Sunday 5 September 2021

भारतीय कैलेंडर की गणना

 हमारे देश मे अंग्रेज जब आये तो उन्होंने अपनी सारी संस्कृति का चलन शुरू किया।इसी क्रम में उन्होंने हमारी सदियों से चली आ रही कलेंडर को भी प्रशासनिक कार्यो से हटा के अपनी अंग्रेजी कलेंडर जिसका शुरुआत इशमशीह के काल से गणना की जाती है कि शुरुआत किया और भारत की सदियों से चली आ रही विक्रम और शक संबत की चलन को समाप्त कर दिया।

बाद कि भारत की सरकारों ने भी उसी अंग्रेज की पद चिन्हों पर चसलते हुए देश की प्रशासनिक कार्यो में अंग्रेजी कलेंडर को अपनाया और यही कलेंडर हमारे सामाजिक स्तर पर भी स्वीकार हो गया।

लेकिन शायद अबके जेनरेशन के बच्चों को पता नही की हमारे देश मे इशवी सन के प्रारंभ से काफ़ी पूर्व से विक्रम संबत राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया था जिसे आप हिन्दू कलेंडर में देखते है।

ईस्वी सन शुरू होने के 57 वर्ष पूर्व भारत के राजा विक्रम द्वारा विक्रम संबत प्रारंभ किया गया था।इसकी गणना करने कितना आसान है निम्न रूप में जान सकते है---

अभी जितना ईस्वी सन है उसमें केवल आप 57 जोड़ दे तो आपको विक्रम संवत की जानकारी हो जायेगी।अर्थात अभी वर्ष अंग्रेजी कलेंडर सर 2021 है,इसमें 57 जोड़ने से विक्रम संबत 2021:+57=2078 अर्थात अभी 2078  विक्रम संबत चल रहा है।

  इसी प्रकार हमारे देश में एक और कलेंडर अंग्रेजी के आने से पूर्ब से चला आ रहा है वह है शक कलेंडर।

शक कलेंडर ईस्वी सन के 78 वर्ष बाद शुरू हुए।अब अगर आपको शक कलेंडर का वर्ष ज्ञात करना हो तो आप चुकी शक कलेंडर ईस्वी सन के 78 वर्ष बाद शुरू हुए अतः आप बर्तमान सन 2021 में 78  घटा दे तो शक संबत मालूम हो जायेगा। जैसे--2021-78=1943 अर्थात बर्तमान में 1943 शक संबत चल रहा है।

उम्मीद है शक और विक्रम सबत कब और कैसे गणना की जायेगी की कुछ सूचना लाभप्रद होगी।

Monday 24 February 2020

बेटा



                               राधेश्याम एक अच्छा बेतन  पाने बाला सरकारी प्दाधिकारी था और बेतन भी उसकी अच्छी थी | उसके परिवार में उसीके अलाबे उसका एकलौता बेटा और पत्नी  थी | उसने अपने बेटे की परिवरिश और पढाई अच्छी तरह से अपने शहर से बाहर कराई थी | बेटा को उसने तकनिकी विषय में कराई ताकि उसका बेटा पढाई पूरी करने के बाद एक अच्छी नैकरी पा कर अपनी जीवन ख़ुशी ख़ुशी बिता सके और बुढ़ापे में उसकी भी ख्याल  रख सके | हुआ भी उसी प्रकार का | लेकिन बेटे की पढाई पूरी करते करते और उसको नैकरी जोइन करते करते राधेश्याम  सरकारी सेवा से निवृत हुय और अब  रिटायर होते पांच वर्ष बीत गए | साथ ही उसकी तवियत भी ठीक नही रहने लगीं थी | अब उसकी ऐसी दशा नही थी की वह अकेले रह सके |जब तवियत ठीक रहती थी तो वह पत्नी के साथ अपने शहर में रहता ही था लेकिन तवियत खराब रहने के बाद हमेसा उसे डॉक्टर की जरुरत होती थी इसकारण उसे अकेले रहने में अब दिक्कत आने लगी | पता नही कव डॉक्टर की जरूरत पर जाय  | काफी सोच विचारने के बाद उसने सोचा की क्यों नही अपने  बेटे  के ही साथ ही रहा जाय | अपनी इस इक्छा को जब बेटे के सामने रखा तो बेटा  ने ख़ुशी ख़ुशी हामी भर दी और उन्हें भी अच्छा लगा की उसके माता पिता उसके ही साथ रहेगे |
                                 समय बीतता गया और राधेश्याम का बेटा जिसका नाम पंकज था उसकी नौकरी में तरक्की भी हो गयी | लेकिन इसी बिच उसके पिता जी जिनकी तबियत खराव रहा करती थी को पर्किन्शन की बीमारी हो गयी और उनकी यदाश्स्त भी कमजोड हो चली थी | लेकिन पंकज अपने पिता की काफी सेवा करता था और उन्की देखभाल भी अपने से करता था |किसी बस्तु की कभी कमी उसके  कारन उसके पिता जी को नही हुई |
                                  कुछ दिनों के बाद पंकज के बॉस का किसी अन्य ऑफिस में दवादला हो गया और उनका चार्ज भी पंकज की ही मिला | उसके ऑफिस में बॉस के ट्रान्सफर और उसका चार्ज इसको मिलने के कारन ऑफिस के  स्टाफ के द्वारा एक स्टार होटल में पार्टी का आयोजन किया गया |इस पार्टी में पंकज को  सपरिवार आने का निमंत्रण था  | लेकिन पंकज ने ऑफिस में बताया की उसके पिता जी की हालत ठीक नही रहती पर्किन्शन की परेशानी है तो उसके स्टाफ ने उन्हें भी लाने की बात कही लेकिन जब उसके ट्रान्सफर बाले बॉस ने कहा तो वह मना नही कर  सका |
                                            पार्टी के दिन पंकज ने अपने पिता जी की भी साथ ले कर पार्टी में आया | जब खाना खाने की बात हुई तो पंकज अपने से खाना निकाल कर अपनी पिता के सामने टेबुल पर रखा
उसके पिता जी अपने हाथो से ही खाना खाना चाहते थे लेकिन दिक्कत तो हो रही थी | पंकज ने देखा की उसके पिता जी खाना तो खा रहे है लेकिन खाना उनके शर्ट पर और मुह के उपर निचे भी लग रहा है और ठीक से वे खाना खा नही रहे है| |   पंकज ने अपना खाना छोड़ के तुरंत पिता जी पास गया और उन्हें अपने हाथो से उन्हें खिलाने लगा |खाना खिलने के बाद उन्हें वाश रूम ले गया और उन्हें अच्छे से मुहं हाथ और उनका कपडा को साफ कर उनका चश्मा को ठीक करके वाश रूम से बाहर आया और उन्हें अपने टेबल पर बिठाया तब जा कर वह अपने साथियो के साथ खाना खाने लगा |
                                                   उसके इस प्रकार के ब्यवहार से और उसके पिता के प्रति उसको प्रेम और लगाब को तो उसके साथी पहले से जानते थे लेकिन उस होटल में अन्य लोग को पंकज की अपने पिता के प्रति इस प्रकार को व्यव्हार को देख कर थोडा आश्चर्य लगा | होटल के अन्य लोग पंकज के इस बर्ताब को देख कर जहाँ एक और ताली बजा कर उसकी सराहना कर रहे थे वही इस जमाने में एक बेटा को अपना फर्ज एक पिता के प्रति करते देख के अजूबा भी लगा |इस का कारन भी साफ है की आजकल के अधिकाँश बेटे अपने पिता को उचित सम्मान भी नही देते |
                                      हरेक बेटा को अपने माता पिता के प्रति आदर भाव के साथ उनके हर दुःख सुख में साये के  तरह साथ रहनी चाहिए क्योकि बेटा जब छोटा था तो यही माता पिता उसको अपने हाथो से उसे खिलाया पिलाया और उसकी हर प्रकार की सेवा की देख भाल की पढ़ाया तब जा के वह अब जिस स्थिति में है बन पाया |उसके इस स्तर तक बनाने में उसके माता पिता की जितने त्याग और तपश्यता है उसका कोई मोल नही |            

Tuesday 31 December 2019

माता पिता की मनोदशा समझे


  1.  

           ----;;   माता पिता की मनोदशा समझे    ;;--

संतोष राज्य सरकारमें बर्ग दो के पद से कार्य करते हुए पिछले वर्ष सरकारी सेवा से सेवानिवृत हुआ था और अपनी पत्नी के साथ पटना में अपने मकान में ख़ुशी ख़ुशी रह रहा था |उसे एक ही पुत्र था और उसने उसकी पढाई बंगलोरे में कराई | उसका पुत्र जिसे वह प्यार से राज कहता है अपनी पढ़ाईसमाप्त करके बंगलौर में ही एक मल्टी नेशनल फार्म में काम करने लगा |उसकी शादी भी वह अपने एक मित्र के पढ़ीं लिखी लड़की से कर दी |दोनो बंगलोरे में ही रहते है |संतोष के बेटे की सेलरी भी अच्छा है और उसके पत्नी भी अपनी समय के उपयोग करते हुए बंगलोरे में ही एक अन्य प्राइवेट फार्म में काम करने लगी |दोनों को मिला के अच्छा पैसा महिना में हो जाता है |दोनों हंसी ख़ुशी से बंगलोरे में रह रहे थे |साल में एक बार वे अपने माता पिता से मिलोने पटना आ जाया करते थे | राज की पत्नी का चुकी मइके भी पटना ही है इस कारन वह बिना अपने सास ससुर को आने की सुचना दिए वह पटना आ जाया करती थी |यह सिलसिला करिव दो तिन सालो से चला आ रहा था | इस बात की जानकारी रहते हुय भी संतोष कभी भी अपने बेटे बहु को इसके बारे में कभी कोई बात नही की |कभी कभी उनकी पत्नी जरुर अपने बेटे से बात करनी चाही लेकिन संतोष ने हमेशा पत्नी को ऐसा न करने की सलाह दे कर उन्हें रोक दिया |
        
 इधर कुछ दिनों से संतोष की पत्नी की तवियत थोड़ी खराब रहने लगी तो डॉक्टर से दिखाया |डाक्टर उन्हें कुछ दिनों के लिए कही बहार ले जाने की सलाह दी ताकि एक स्थान पर रहते रहते जो इन्हें नीरसता महसूस हो रही है दूर हो सके |चुकी अपनी सेवानिवृति के बाद भी संतोष पटना से अबतक बाहर कभी नही गये अत उसने सोचा की क्योंही कुछ दिनो के लिए अपने बेटे के   पास बंगलोरे ही चले जाय |लेकिन इस बात को उन्होंने कभी भी अपनी पत्नी को नही बताई|इस बिच कुछ आवशयक कार्य बस इनके पुत्र और बहु को पटना आने का प्रोग्राम बना और दोनों पटनाआये लेकिन अपने ससुराल | बंगलोरे जाने के पहले एक दिन के  लिए राज पत्नी के  साथ अपने  माता पिता से भी मिलने आया | रात्रि में  जब सभी खाना खा चुके थे तो राज ने अपने  माता पिता से कहा की वह कलह ही बैंगलोरे बापस जा रहा है |उसकी फ्लाइट की टिकट  पहले से बुक है |
  
 बात करने के क्रम में संतोष ने अपने बेटे से पत्नी की तवियत के बारे में बताई और कहा की डॉक्टर ने उसे कुछ दिनों के लिए कही बाहर  जाने के लिए कहा है |मै सोचता हूँ की तुम भी अब आ ही गये हो तो तुम अपनी मम्मी की कुछ दिनों के लिए अपने साथ बंगलौर लेते जाओ ताकि कुछ दिन रह लेगी तो तवियत भी थोडा बदल जायेगा |मैं बाद में आउगा तो इसे पटना लेते आयेगे |इतना सुनते ही राज और उसकी पत्नी थोडा असहज हो गयी क्योकि इन दोनों को ऐसी बात सुनने की जरा भी उम्मीद नही थी |थोड़ी देर चुप रहने के बाद राज ने अपने पिता से कहा  की पिता जी अगली बार फिर इसके बारे में सोचेगे | अगली सुबह राज और उसकी पत्नी दोनों बंगलोरे के लिए चल दिए |
  
 इधर पटना में राज ने अपने माता पिता से बात करना भी थोडा कम  कर दिया और अगर बात भी करता था तो  बड़ी ही सावधानी से ताकि पिता जी  कोई ऐसी बात न कर दे |समय भी ठीक से ही कट  रही थी | धीरे धीरे चार पांच माह बित गया | अब नवम्बर माह आ गया तो संतोष ने सोचा की सर्दी के मौसम से ही इन्न्की पत्नी को और इन्हें भी थोड़ी परेशानी होती है तो क्यों नही थोड़ी दिनों के लिए बंगलोरे में  ही बेटेबहु  के साथ रह आये तब तक जब तक पटना में सर्दी रहे |इसे ही सोच कर संतोष  पहले अपनी पत्नी से बात  की ,जब इनकी पत्नी तैयार हो गयी तब संतोष ने अपने बेटे से बात न कर पत्नी को ही बेटे से बात करने को कहा |सोचा माँ की तवियत के बारे में तो बेटा जनता ही है और माँ अगर  फ़ोन करेगी तो बेटा तैयार हो जायेगा |
  
 एक दिन रात में संतोष को पत्नी ने अपने बेटे से फ़ोन पर बात की |पहले तो  माँ बेटे में अच्छी बात हई लेकिन जैसे ही माँ से बंगलोरे आने की बात राज ने  सुना उसके होस उड़ गये |एकाएक उसने माँ से थोड़ी अनमनाहट में बात की की माँ अभी आने की क्या जरूरत है |यहं पर अभी हमलोग तो अभी तुस्रत ही एक नए  मकान  में सिफ्ट  हए है और आप नही न जानते की नया  मकान में सिफ्ट होने में कितना पैसा एडवांस देना पड़ता है साथ ही यहां शहर भी महगा है |हमलोग जितना दोनों  आदमी मिलके कमाते है वह  तो पूरा होता नही है और आप लोग आयेगे तो फिर इस छोटे से फ्लैट में एडजस्ट करना मुस्किल होगा साथ ही आपलोग का आने जाने का खर्चा |इतना तत्काल तो हम नही सह सकते|इसपर माँ ने कही बेटे तुम्हारे पापा को भी अच्छा पेंसन मिलता है वे कह रहे  थे  की तुम खर्चा की चिंता एकदम नही करो , तुम्हारे पापा तुमको जो भी हमलोग के आने से खर्च बढ़ेगा ब्यबस्था कर  देगे आखिर हमलोग भी तो यहां रहते और खाते है तो खर्च तो  होता ही है | लेकिन राज अपनी बात पर रहा और माँ को कुछ दिन के लिए आने से मना करने में  सफल रहा |    
  
समय बीतता गया और सभी अपने अपने काम में ब्यस्त थे |एक दिन संतोष पत्नी के साथ पटना में स्टेशन पर शनिबार को महाबीर मंदिर को दर्शन को गया | पूजा करके बापस आ ही रहा  था की उसकी  नजर एक शक्स स्वे टकराई | दूर से प्रणाम पाती  हुई और धीरे धीरे दोनों आपस में मिले |ये शक्स कोई और नही राज के ससुर के बहनोई थे जो पटना में ही रहते है | बातो ही बातो में संतोष को उनसे जानकारी मिली की राज के सास ससुर आजकल दो महिना से राज के साथ बंगलोरे में रह रहे है  और पहली जनबरी के बाद ही उनकौ पटना बापस आने का प्रोग्राम है ,क्योकि उनकी अनुपस्थिति में उनकी(राज के ससुर की ) पटना स्थित मकान की देखभाल उनके आने तक ये ही  कर रहे है (अर्थात राज के ससुर के बहनोई )|बात समाप्त होते ही दोनों आदमी अपनी अपनी और चल दिए |

  वहा से जब संतोष पत्नी के साथ अपने घर पहुचे तो  बाले है |हमलोग बाद में अपना प्रोग्राम बनांते |उसको छिपाने की क्या जरूरत थी |मुझे भी तो दुःख हुआ ही है  लिकिन फिर क्या किया जाय |बातो ही बातो में राज  की माँ ने कही की वह आज ही राज से बात करेगी इस बारे में ,लिकिन संतोष ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी |
    
  समय धीरे धीरे बीतते  गया और मार्च का महिना आ गया |हर साल की तरह राज को इस बर्ष भी होली के अवसर पर पाटना अपने माता पिता के पास ही आना था|जब उसका पटना आने का नियत समय आ गया और वह नही आया तो माँ का मन नही माना |माँ ने फोन किया लिकिन फोन इंगेज आ रहा था | राज की माँ मन परेशान  हो रहा था |तब ही दुसरे दिन राज का फोन आया | राज ने में से कहा  की माँ तुम्हारी बहु की तवियत इधर से ठीक नही रहते है डॉक्टर से दिखाया तो उसने आराम करने की सलाह दी है |तुम अगर आ जाते  तो हमे और उसे दोनों को आराम होता |जब माँ ने जोड़ दे के जानना चाही की क्या बात है तो उसने फ़ोन अपने पत्नी को पकड़ा दिए |राज की पत्नी ने अपनी सास (राज की माँ )से बोली की माँ जी आप दादी बनने  बाली  है |आप यहां आ जाते तो अच्छा होता |
        
 राज की माँ सब कुछ जानती है की जब उसे जरूरत थी तो बेटे ने कैसे बहाना बना दिया और अपने सास ससुर के आने के कारन उसने अपनी माँ को आने न देने का कितना बहाना बनाया |राज के पिता संतोष भी तो राज से काफी खफा थे लेकिन दोनों दादा दादी बनने के ख़ुशी में अपनी नाराजगी और खीज को भुला के तैयार हो गये  क्योकि उन्हें दादा और दादी बनने की जो खबर मिली |

  तय समय को संतोष और उसकी पत्नी अपने बेटे के पास जाने को 

बंगलोरे के लिए प्रस्थन कर गये |
       
       

Wednesday 23 January 2019

सहिष्णु देश


भारत विश्व का बड़ा प्रजातांत्रिक देश है।इस देश मे सभी धर्मो के मानने बाले,बिभिन्न भाषाओ के बोलने बाले बड़े ही मेल जोल से आपसी सद्भभाव की भावना से ओतप्रोत होकर सदियो से रहते चले आये है।देश ने अपने मे कई धर्मो और भाषाओ को समाहित ही नही की बल्कि उनकी अभिरक्छा और सम्बर्धन भी की।सभी धर्मों के मानने बाले बिना कोई भेद भाव के अपनी योग्यता और छमता के आधार पर उन्नति और विकास हर छेत्र में किया है।
     दुनियां में भारत देश जैसा कोई और सहिष्णुता बाला देश नही मिलेगा।इस देश मे हर नागरिक बिना कोई डर भय के अपनी बात किसी भी समय किसी भी स्थिति में रख सकता है जिसमे किसी सरकार या संस्थान का कोई हस्तछेप नही होता ,क्योकि देश का हर नागरिक को देश की संविधान ने  बिना जाति,धर्म,लिगं,स्थान,आदि के भेद भाव के प्रदान की है ।
      इस देश मे नागरिकों की संबैधानिक अधिकारों की रखबली के रूप में हमारे संविधान में शशक्त न्यायपालिका की व्यवस्ता कर रखी है जिनके पास देश का कोई नागरिक अपनी अधिकार की सुरक्छा के लिए किसी भी समय जा सकता है।
         फिर भी देश मे कुछ सम्पन्न और अपने को तथाकथित बुद्धिजीवी प्रगतिशील कहने बाले सुबिधा सम्पन्न लोगों को जो अपनी बात बिना कोई भेद भाव के कह रहे हैं यह देश असहिष्णु और असुरक्छित लगता है।ऐसे लोग बतानुकूलित कमरों में बैठ कर आराम से महंगी खानो या पेय का घुट पीते हुए  सरकार की आलोचना खुलेआम करते है ।वही दूसरी ओर  देश की सामान्य नागरिक जो खुशी से देश मे रहते है उन्हें ना तो कोई डर लगता है और न ही देश उनके लिए असहिष्णु और असुरक्छित लगता है ।उन्हें तो देश मे कोई भेद भाव नजर भी नजर नही आती है।ऐसे नागरिक को देश उनकी मातृभूमि है जिसकी आलोचना ऎसे नागरिक को मंजूर नही।ये हर हाल में देश के लिए अपना सर्वश्व नौछावर को ततपर रहते है।ऐसे देश के नागरिकों को सत सत नमन।
            लेकिन सब के बाबजूद हमारे देश मे कुछ सम्पन्न और तथाकथित आपने को बुद्धिजीवी वर्ग कहलाने बाले व्यक्तियों को इस देश मे रहना सुरक्छित नही लगता है।हमेशा उन्हें डर लगता है भले वे सुरक्छा घेरे में रहते हों।ऐसे लोगो मे देश की कुछ नेताओ के साथ साथ बड़े बड़े कलाकारों,तथाकथित लेखको,विचारको तक सुमार हैं।
           जब जब देश के किसी राज्य में चुनाव का मौसम आता है या देश मे आम चुनाव आने को होता है ऐसे राजनीतिक विचारक,लेखकों,बुद्धिजीवियो,कलाकारों,और सामाजिक तथाकथित कार्यकर्ताओं को देश रहने लायक नही दिखता है, उन्हें देश की हालात असहिष्णु और डरावना लगता है ।ऐसे लोगो के द्वारा दूरदर्शन पर,समाचार पत्रों में,पत्रिकाओ में,सेमिनारों में बड़ी बड़ी लेखों को प्रकाशित करते हैं, वक्तव्य देते हैं और फिर भी वे सभी दृष्टिकोण से देश मे सामान्य जन से ज्यादा सुरक्छित और सुरक्छा में रहते हैं।बास्तब में ये लोग अंतरराष्ट्रीय भारतीय षड्यंत्र के हाथों खेलते है जिन्हें देश की उन्नति और अंतरराष्ट्रीय सम्मान रास नही आता है

Thursday 13 December 2018

संस्कार और उसका महत्व


                                            संस्कार और उसका महत्व

  •                 संस्कार हमारी जीवन में जीवन को पूर्ण बनाने का एक अभीष्ट गुण है ,जिससे हम पूर्ण हो के शुद्ध आचरणों से अलंकृत होते है और मनुष इन्ही गुणों के कारन  अपनी सहज प्रवृतियों का सम्पूर्ण विकाश करते हुए अपने स्वम् और अपने समाज का कल्याण और विकाश करता है |
  •         संस्कार मनुष्य के अंदर अपने बुरे कर्मो को दूर करने की शक्ति के साथ साथ अच्छे कर्मो और कृतो  को अपनाने के गुणों का विकाश करता है जिससे मनुष स्वम् के साथ साथ अपने परिवार और समाज का विकाश को और अग्रसर होता है |
  •           संस्कार से  सामान्य अर्थ में हम समझते है कि संस्कार मनुष का वह गुण है जो उसको एक अच्छी और शभ्य , सुसंस्कृत मनुष्य बनने की गुणों को उसके अंदर विकाश करता है |
  •      संस्कार मनुष्य को बुरे विचारो ,अज्ञानता ,अंधकार से बाहर निकाल कर हमारे आचार,विचार को शुद्ध कर अच्छे कार्यो और ज्ञान –विज्ञानं से युक्त करता है |इससे हमारा सामाजिक और अध्यात्मिक जीवन पूर्ण होता है |हमारे व्यक्तित्व से निर्माण में काफी सहायक होता है |मेरे मन,वाणी और कर्म को शुद्ध ब्नानता है |
  •          हमारे समाज में संस्कार बच्चो अपने बड़ों से ग्रहण करते ,सीखते है | इस प्रिक्रिया का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है ,जिसकी नीव मनुष्य की जन्म  लेने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है| या यो कहा जा सकता है की बच्चा जब माँ के गर्व में रहता ही तभी से इसमें संस्कार के गुणों का बिकाश शुरू हो जाता है |बच्चे की माँ की सोच  ,स्वाभाव और प्रकृति जैसा होगा उस बच्चे पर उसका प्रभाव भी उसी सोच,स्वाभाव और प्रकृति  का पड़ता है |इसका सबले अच्छा उदाहरण और प्रसंग  हमारे धर्म ग्रन्थ महाभारत में आता है जब अभिमन्यु अपनी माता के गर्भ में था तो अर्जुन अपनी पत्नी को युद्ध के चक्रव्हू से कैसे निकला जाय  की रणनीति सुना रहे थे ,लेकिन  में ही उनकी पत्नी कहानी सुनते सुनते बीच में ही  सों गयी और पूरी रणनीति नही सुन स्की जिसका नतीजा सभी जानते है |
  •         परिवार समाज में बच्चा जिन जिन कार्यो को अपने बड़ों से क्रमबद्ध रूप  सीखता है ,उसी सिखने की प्रक्रिया को संस्कार का आरंभ माना जाता है जिसे बच्चा बचपन में ही प्रहण करता है | बच्चा अपने परिवार में अपने बड़ो से जिन आदतों को अपने बचपन में देखते  हुए बड़ा होता है ,जिसे देख कर करते  हुए बड़ा होता है उन्ही आदतों का प्रभाव उस पर पड़ता है और  इसी प्रक्रिया को संस्कार की नीव डालना कहा जाता  है, जो बचपन में ही पड़ता है |  बच्चा जब भी अच्छी और बुरी कार्यो के देखता है उसकी अंदर वैसी ही आदत पड़ती है |
  •          जब हमारे परिवार में बड़े ,बुजुर्ग आते है या बाहर जाते है तो घर छोटे बच्चो को बताते है की बेटा आपके रिश्ते में चाचा ,दादा ,या जो भी रिश्ता होता है उसे बताते है और तदनुसार  उन्हें पैर छु के प्रणाम करने की कहते है और तब बच्चा यह जनता है की अपने से बड़ो को कैसे प्रणाम किया जाता है |यहाँ तक की बच्चे अपने से बड़ो को जब ऐसा ही करते देखते है तो उसे नकल भी करते है और इसी तरह बे सीखते है |हम घर में जब कोई कार्य करते है तो बच्चे ध्यान से देखता है और उन्ही कार्यो को नकल करते है | |इस तरह की सिखने की गुण को ही संस्कार का प्रारंभ कहते है जो परिवार से ही प्रारंभ होता है |
  •       आप अपने बडो ,बुजुर्गो और दुसरे के साथ जैसा भी ब्यवहार करते है आपके परिवार में आपके छोटे बच्चो पर उसका काफी असर पड़ता है और उही उसको आदत और स्वभाव बन जाता है |;अगर उसने अपने से अच्छी आदते और शिक्छा ग्रहण की तो उसमे अच्छी आदते पड़ेगी बरना बुरा |यही आदते बच्चो  में संस्कार पैदा करना  कहते है |आप जैसा करेगे आपके छोटे वैसा ही सीखेगे |इसीलिए कहा जाता है की आप छोटे बच्चो के सामने ना तो गलत काम करे और ना गलत भाषा का इस्तेमाल करे क्योकि इसका असर बच्चो पर पड़ता है |
  •         हिन्दू शस्तो में संस्कार का मतलव उस धार्मिक कार्यो से था जो किसी व्यक्ति को अपने परिवार   ,समाज के विकाश और उन्नति के योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके अंदर सद्गुणों का विकाश कर मनुष्य के शरीर ,मन ,मष्तिष्क को पवित्र करने को था जिससे व्यक्ति के अंदर अभीष्ट गुणों का जन्म हो सके |
  •       हमारे धर्म में संस्कारो का प्रारंभ जीवन में इस अबस्थाओ में ही हो जाता है जिनमे –ग्राभाधारण , संतान्नोत्पत्ति , उसके बाद नामांकरण , अन्नप्राशन , चूडाकरण , उपनयन , ब्रह्मचर्य , बिबाह संस्कार के माध्यम से अपने गृहस्थी जीवन में मनुष्य प्रवेश करता है जहाँ से मनुष्य पुनः इन्ही संस्कारो को अपने बाद की पीढ़ी में डालते हुए अपनी अंतिम संस्कार की यात्रा की और प्रस्थान करता है |
  •           हमारे अभी के समाज में आजकल इन्ही संस्कार की कमी हो गयी है जिसका परिणाम है कि  हमारे परिवार ,समाज की अगली पीढ़ी के बच्चो में इन संस्कार रूपी गुणों का आभाव हो गया है और समाज में चारो और तनाव, गुस्सा के साथ साथ बुरी भावनाओ का आगमन हो गया है जिससे हमारा समाज बिकृत विचारो और कृतो के दलदल में फस  गया है |
  •       समाज के बड़े लोगो की यह जवाबदेही है की वे अपने अच्छे आचरणों और विचारी से अपनी अगली पीढ़ी को अवगत करावे |आपके बच्चे आपके कार्यो और विचारो को जव देखेगे तो उसका वे अनुसरण करेगे | कहा भी  जाता है की child  learn by doing .इसलिए आप अपने आदतों में सदाचार ,सद्गुण लाये और अच्छे कार्यो की करे ताकि आपकी अगली पीढ़ी सदाचारी, शभ्य ,बने |
  •           

Saturday 30 June 2018

कैथी लिपि

कैथी लिपि-------
   
कैथी लिपि जिससे अंग लिपि भी  कहा जाता है | देश स्वतंत्र होने के पूर्व यह लिपि देश के अधिकांश भागो की  जन लिपि थी ऐसा कहा जा सकता है | यही कारन था की शेरशाह जैसे अधिकांश शाशको ने अपने राजकाज के लिए इसी कैथी लिपि को राजकाज की सञ्चालन की भाषा और लिपि अपनाई और इसे ही बिकसित ,और संरक्छन दिया।  उस समय सामान्य जन की लिपि कैथी लिपि ही हुआ करती थी राजकाज के सामान्य कार्य के अलावा लोगो की दैनिक लिखा पढ़ी की एक महत्वपूर्ण  लिपि थी। 
कालान्तर में जब देश पर अंग्रेजो का शासन  हुआ करता था उस समय अंग्रेजी राज्य में भी कैथी भाष तो गुजरात के कच्छ से ले कर कोशी छेत्रो तक की  राजकीय लिपि बनाई गयी  था। सरकार के सारे  कार्य के अलावा उस समय के न्याययिक कार्यो के साथ साथ  आम जन की कैथी ही सर्वमान्य और समृद्ध लिपि थी इस भाषा लिपि के कारण अंग्रेजो और उसके पूर्व के जमाने के सभी सामान्य जन की लिपि कैथी लिपि ही थी . कैथी भाषा में उस समय के अधिकतर कागजात ,पत्र आदि  लिखी मिलती थी और अभी भी मिलती है |पुराने सरकारी दस्ताबेजो को पढने के लिए तो अभी भी राज्य और कन्द्रीय सरकारों को कार्यालयों में बजापते सूचना प्रसाशित कर इस भाषा और लिपि के जानकर लोगो को ऐसे कागजातों को पढ़ने के लिए राशी भुगतान कर रखा जा रहा है क्योकि उस समय के बहुत सारे कागजात में क्या लिखा है जानना जरूरी है |खास कर जमीन जायदाद के मामले में तो और जरूरी होता है जहाँ पुराने  सारे के सारे कागजात कैथी लिपि में ही लिखी मिलती  है | .
जब देश आजाद हुआ तो उस समय की सरकार ने इस भाषा पर ध्यान नही दिया और घिरे धीरे यह कैथी लिपि  लुप्त होते चली गयी . मैंने अपने बचपन में देखा है की मेरे पिता जी आपस में जिन पत्रों को लिखा करते थे वे सभी पत्रों की लिपि कैथी लिपि ही हुआ करती थी | अभी भी मेरे घरो में कैथी लिपि की लिखी हुई कई दस्ताबेज मौजूद है |.
जिस तरह देश में अन्य लिपिओ का विकाश हुआ उसी  तरह कैथी लिपि को किसी ने विकाश पर ध्यान नही दिया और यह लिपि धीरे धीरे लुप्त के कगार पर आ गयी है |.कैथी लिपि पहले मुख्य तौर पर कायस्थ जाती की लिपि थी . कायस्थों की मुख्य जीविका का साधन यह  लिपि थी . पहले गाँव घरो में अधिकतर लोग जो पढ़े लिखे नही होते थे अपने पत्रों को  या कोई भी सरकारी कागजात या फिर जमीन,घर आदि के कागजात को पढ़ाने केलिए इन्ही  समुदाय के पास जाते थे |इस समुदाय के लोगो का मुख्य जिविकी का श्रोत था .लेकिन आजादी के बाद इस समुदाय  के जीवन निर्वहन के साधन को  बनाये रखने पर कोई ध्यान नही दिया गया | इसका परिणाम यह हुआ की इस लिपि के जानकारी रखने बालो की तायदाद धीरे धीरे छिन्य होती चली  गयी |  अब तो स्थिथि यह है की इस लिपि को जानने बालो को बड़ी मुस्किल से खोजी जाती है | यहाँ तक की इस लिपि के बिषय में अब लोग जानते भी नही है की ऐसी भी कोई लिपि कभी रही थी |
जहाँ तक मेरी जानकारी है जो अपने पिता जी से सुना था की कैथी लिपि की उत्पत्ति कायस्थ शब्द से हुई है |देश  में अंग्रेजो की शासन के पूर्ब मुगलकालीन शासनों में भी कैथी लिपि देश की राजकीय भाषा के रूप में स्थापित थी |इसके बाद अंग्रेजो के शासन काल में भी इस भाषा का उपयोग राजकीय दस्तावेजो में मिलता है ,इस से यह भी प्रमाणित होता है की इस भाषा का उस समय को राजकाज पर पूरा और स्पस्ट छाप था  |उस समय के जमीन ,लगानो ,क़ानूनी दस्तावेजो ,दानपत्रो ,पत्रों में स्पस्ट रूप से देखा जा सकता है |
                  कैथी भाषा और इसकी लिपि को मुख्यत ; तीन प्रकार थे जिनका तात्कालिक समय में उपयोग किया जाता था |उनमें ---तिरहुत कैथी लिपि , मगही कैथी लिपि , और भोजपुरी कैथी लिपि | इस लिपि का बिस्तार जहाँ तक मुझे बचपन में पिता जो द्वारा बताया गया था और जो मुझे याद है के अनुसार असाम , मगध , बंगाल , गुजरात के कछ छेत्र तक था |इसके साथ साथ इस लिपि का बिस्तार उत्तर प्रदेश , उड़ीसा , अवध  , के साथ साथ देश के बड़े हिस्सों में था और इन छेत्रो की सरकारी कामकाज की लिपि यही कैथी लीपि थी |कैथी लिपि काफी सम्ब्रिध लिपि उस जमाने की थी |
कैथी लिपि की वर्णमाला कुछ इस प्रकार है जो  मैंने अपने स्तर से लिखी है --




इधर मैंने बिहार के दैनिक समाचार पत्रों में देखा है की बिहार सरकार के द्वारा भी कुछ लुप्त हो रही लिपि और भाषाओ को पुनः जागृत करने के प्रयास में इस कैथी भाषा और लिपि का भी स्थान दिया गया है |बस्ताव में राज्य के कैथी भाषा के जानकार लोगो के लिया एक अच्छी खवर है |
            अगर इस लेख को लिखने में कुछ कमियां हो तो मुझे भी जानकारी होनी चाहिये |वैसे मै कोई भाषा का जानकार नही हूँ |वस इस भाषा की उत्पत्ति समुदाय से हूँ और दिमाग में आया की इसके बारे में जो भी मेरी जानकारी है में  अपने बिचार लोगो से साझा करू |इसी सोच से इस लिख  को प्रस्स्तुत किया हूँ |
  शेष टिप्पणी की प्रतिच्छा में |.

Monday 18 June 2018

जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही

जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही
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जब मे छोटा था और अपने परोस के गाँव के सरकारी स्कूल में पढाई करता था तब मेरे पिता जी मुझे घर पर पढ़ाने के लिए एक टीचर रखे थे जो मेरे गाँव के ही थे और मुस्लिम थे .वे मेरे घर पर रहते थे और वहीं उन्हें खाना और पढ़ना रहता था | वे मेरे अलावा मेरे चचेरे भाई को भी पढ़ाते थे | मुझपर उनकी थोड़ी ज्यादा कृपा दृष्टी रहती थी |

एक दिन उन्होंने जो एक कहानी हम लोगो को सुनाई. उसकी गूंज आज तक मेरे कानो में मौजूद है | कभी कभी वे शब्द अनायास कानो में बजने लगते हैं जैसे कि  आज एकाएक महसूस हुआ | मै उस कहानी को आपके साथ साझा कर रहा हूँ -------

एक शहर में एक संपन्न व्यक्ति रहते थे जिनका अपना कारोबार शहर में था . बड़ा खुशहाल परिवार था और उस परिवार में ज्यादा सदस्य भी नही थे . उनकी पत्नी भी काफी सुशिल सदभावी और सुसंस्कृत धर्मपरायण महिला थी | शादी के कुछ दिन बाद उस व्यक्ति के घर में एक बालक का जन्म हुआ | काफी धूमधाम से उस बालक की आने के अवसर पर जश्न मनाया गया.  कुछ दिन और जब बीता और बालक कुछ बड़ा हुआ तो उनकी पत्नी की तबियत खराब रहने लगी | चिकित्सक से देखने पर उन्हें टी ०बी० की बीमारी बताया गया | बहुत पहले यह बीमारी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी |

कुछ दिनों के इलाज के बाद उनको पत्नी का इंतकाल हो गया | घर के और लोगो ने तथा परिजनों ने उनपर दवाब बनाया कि  बच्चा छोटा है घर में देखभाल के लिए कोई नही है इस कारन आप दूसरी शादी कर ले | लेकिन उस भद्र पुरुष ने किसी की एक ना सुनी और दूसरी शादी नही की | अपनी कारोवार के साथ साथ अपने बालक को बड़े लाड प्यार से पढ़ाया और बड़ा किया |लड़का उनके ही साथ उनके कारोवार में हाथ बटाने लगा | धीरे धीरे बालक शादी के योग्य हो गया | पिता ने अपने पिता धर्म निभाते हए उसकी शादी कर दी | घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया |

कुछ दिन और बीतने के बाद पिता ने सोचा, अब मुझे अपना सारा कारोबार अपने बेटे को सौप कर मुझे आराम की जीबन बिताना चाहिए | बेटा से अपने मन की बात साझा किया |बेटे ने आदर्श पुत्र की तरह ही पिता की इक्छा का सम्मान किया |
पिता अपना सारा कारोवार अपने बेटा को सौप कर आराम की जीवन जीने की लालसा से जी रहा था |

कुछ ही दिन बीते थे की एक दिन पिता खाने के टेबल पर था और उसकी पुत्र बधू उसको खाना परोसी थी |जब खाना परोस कर लायी तो बाप ने देखा की उसके सामने रोटी लायी गयी वह बिना घी के थी | इन महाश्य की आदत थी की जब भी वे खाना में रोटी खाते थे तो रोटी में घी लगना आवश्यक था |पिता ने कुछ नही कहा और खाना खा लिया | जब वे खाना कहा रहे थे तो बेटा जो उनका अब सारा कारोवार सभाल रहा था अपने काम से वापस घर आया, उसने अपने पिता को खाता देखा था |

बाद में उसकी पत्नी ने उसे भी खाना खाने हेतु खाना परोस कर लायी | उसके खाने में उसने देखा की उसको जो रोटी खाने को रोटी दी गयी उसमे घी लगी है |उस समय बेटे ने कुछ नही किसी से बोला और चुप चाप रहा |

दुसरे दिन पुत्र ने अपने पिता से कहा कि पिता जी अब आप पुनः अपना कारोवार सभाले और मै आप के कारोवार में एक कर्मचारी की भांति काम करूँगा और अब मै आप के साथ भी नही रहूँगा | मै अब अलग एक किराये के मकान में अपनी पत्नी के साथ रहूँगा | पिता ने समझाया, लेकिन बेटा नही माना और अपने पिता का घर छोड़ कर एक किराया के मकान में चला गया | पिता ने इतना कहा की कारन क्या था अब तो तुम मुझे बताओ |

पिता के कहने पर पुत्र ने सारी कहानी बताई और कहा कि पिता जी, जब मै ने देखा की आप के द्वारा रोटी में घी लगाने को कहने पर भी घी ख़त्म होने को बात बताई गयी और घी नही मिला ,उसी समय मेरे खाने में रोटी में घी लगा मिला तो मै ने तय किया कि आराम से बिना कुछ किये अगर किसी को कुछ मिलता है तो उसकी कीमत वह नही अंकता है |

इस बात को सुन कर उसकी पत्नी को अपने किये पर काफी अफसोस हुआ और उसने पिता से माफी मांगी | फिर सभी पिता पुत्र पुत्रबधू साथ साथ रहने लगे |

मुझे लगा की मै उतनी पुराणी कहानी आपके साथ सेयर करू इसलिए मै ने यादास्त को तरो