tag:blogger.com,1999:blog-48252772545912735282024-03-18T21:24:56.492-07:00अनुभवsatishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-69538305452249909702021-09-05T22:46:00.003-07:002021-09-05T22:46:33.859-07:00भारतीय कैलेंडर की गणना <p> हमारे देश मे अंग्रेज जब आये तो उन्होंने अपनी सारी संस्कृति का चलन शुरू किया।इसी क्रम में उन्होंने हमारी सदियों से चली आ रही कलेंडर को भी प्रशासनिक कार्यो से हटा के अपनी अंग्रेजी कलेंडर जिसका शुरुआत इशमशीह के काल से गणना की जाती है कि शुरुआत किया और भारत की सदियों से चली आ रही विक्रम और शक संबत की चलन को समाप्त कर दिया।</p><p>बाद कि भारत की सरकारों ने भी उसी अंग्रेज की पद चिन्हों पर चसलते हुए देश की प्रशासनिक कार्यो में अंग्रेजी कलेंडर को अपनाया और यही कलेंडर हमारे सामाजिक स्तर पर भी स्वीकार हो गया।</p><p>लेकिन शायद अबके जेनरेशन के बच्चों को पता नही की हमारे देश मे इशवी सन के प्रारंभ से काफ़ी पूर्व से विक्रम संबत राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया था जिसे आप हिन्दू कलेंडर में देखते है।</p><p>ईस्वी सन शुरू होने के 57 वर्ष पूर्व भारत के राजा विक्रम द्वारा विक्रम संबत प्रारंभ किया गया था।इसकी गणना करने कितना आसान है निम्न रूप में जान सकते है---</p><p>अभी जितना ईस्वी सन है उसमें केवल आप 57 जोड़ दे तो आपको विक्रम संवत की जानकारी हो जायेगी।अर्थात अभी वर्ष अंग्रेजी कलेंडर सर 2021 है,इसमें 57 जोड़ने से विक्रम संबत 2021:+57=2078 अर्थात अभी 2078 विक्रम संबत चल रहा है।</p><p> इसी प्रकार हमारे देश में एक और कलेंडर अंग्रेजी के आने से पूर्ब से चला आ रहा है वह है शक कलेंडर।</p><p>शक कलेंडर ईस्वी सन के 78 वर्ष बाद शुरू हुए।अब अगर आपको शक कलेंडर का वर्ष ज्ञात करना हो तो आप चुकी शक कलेंडर ईस्वी सन के 78 वर्ष बाद शुरू हुए अतः आप बर्तमान सन 2021 में 78 घटा दे तो शक संबत मालूम हो जायेगा। जैसे--2021-78=1943 अर्थात बर्तमान में 1943 शक संबत चल रहा है।</p><p>उम्मीद है शक और विक्रम सबत कब और कैसे गणना की जायेगी की कुछ सूचना लाभप्रद होगी।</p>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-38434215234419209352020-02-24T02:38:00.000-08:002020-02-24T02:38:43.070-08:00बेटा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
राधेश्याम एक अच्छा बेतन पाने बाला सरकारी प्दाधिकारी था और बेतन भी उसकी अच्छी थी | उसके परिवार में उसीके अलाबे उसका एकलौता बेटा और पत्नी थी | उसने अपने बेटे की परिवरिश और पढाई अच्छी तरह से अपने शहर से बाहर कराई थी | बेटा को उसने तकनिकी विषय में कराई ताकि उसका बेटा पढाई पूरी करने के बाद एक अच्छी नैकरी पा कर अपनी जीवन ख़ुशी ख़ुशी बिता सके और बुढ़ापे में उसकी भी ख्याल रख सके | हुआ भी उसी प्रकार का | लेकिन बेटे की पढाई पूरी करते करते और उसको नैकरी जोइन करते करते राधेश्याम सरकारी सेवा से निवृत हुय और अब रिटायर होते पांच वर्ष बीत गए | साथ ही उसकी तवियत भी ठीक नही रहने लगीं थी | अब उसकी ऐसी दशा नही थी की वह अकेले रह सके |जब तवियत ठीक रहती थी तो वह पत्नी के साथ अपने शहर में रहता ही था लेकिन तवियत खराब रहने के बाद हमेसा उसे डॉक्टर की जरुरत होती थी इसकारण उसे अकेले रहने में अब दिक्कत आने लगी | पता नही कव डॉक्टर की जरूरत पर जाय | काफी सोच विचारने के बाद उसने सोचा की क्यों नही अपने बेटे के ही साथ ही रहा जाय | अपनी इस इक्छा को जब बेटे के सामने रखा तो बेटा ने ख़ुशी ख़ुशी हामी भर दी और उन्हें भी अच्छा लगा की उसके माता पिता उसके ही साथ रहेगे |<br />
समय बीतता गया और राधेश्याम का बेटा जिसका नाम पंकज था उसकी नौकरी में तरक्की भी हो गयी | लेकिन इसी बिच उसके पिता जी जिनकी तबियत खराव रहा करती थी को पर्किन्शन की बीमारी हो गयी और उनकी यदाश्स्त भी कमजोड हो चली थी | लेकिन पंकज अपने पिता की काफी सेवा करता था और उन्की देखभाल भी अपने से करता था |किसी बस्तु की कभी कमी उसके कारन उसके पिता जी को नही हुई |<br />
कुछ दिनों के बाद पंकज के बॉस का किसी अन्य ऑफिस में दवादला हो गया और उनका चार्ज भी पंकज की ही मिला | उसके ऑफिस में बॉस के ट्रान्सफर और उसका चार्ज इसको मिलने के कारन ऑफिस के स्टाफ के द्वारा एक स्टार होटल में पार्टी का आयोजन किया गया |इस पार्टी में पंकज को सपरिवार आने का निमंत्रण था | लेकिन पंकज ने ऑफिस में बताया की उसके पिता जी की हालत ठीक नही रहती पर्किन्शन की परेशानी है तो उसके स्टाफ ने उन्हें भी लाने की बात कही लेकिन जब उसके ट्रान्सफर बाले बॉस ने कहा तो वह मना नही कर सका |<br />
पार्टी के दिन पंकज ने अपने पिता जी की भी साथ ले कर पार्टी में आया | जब खाना खाने की बात हुई तो पंकज अपने से खाना निकाल कर अपनी पिता के सामने टेबुल पर रखा<br />उसके पिता जी अपने हाथो से ही खाना खाना चाहते थे लेकिन दिक्कत तो हो रही थी | पंकज ने देखा की उसके पिता जी खाना तो खा रहे है लेकिन खाना उनके शर्ट पर और मुह के उपर निचे भी लग रहा है और ठीक से वे खाना खा नही रहे है| | पंकज ने अपना खाना छोड़ के तुरंत पिता जी पास गया और उन्हें अपने हाथो से उन्हें खिलाने लगा |खाना खिलने के बाद उन्हें वाश रूम ले गया और उन्हें अच्छे से मुहं हाथ और उनका कपडा को साफ कर उनका चश्मा को ठीक करके वाश रूम से बाहर आया और उन्हें अपने टेबल पर बिठाया तब जा कर वह अपने साथियो के साथ खाना खाने लगा |<br />
उसके इस प्रकार के ब्यवहार से और उसके पिता के प्रति उसको प्रेम और लगाब को तो उसके साथी पहले से जानते थे लेकिन उस होटल में अन्य लोग को पंकज की अपने पिता के प्रति इस प्रकार को व्यव्हार को देख कर थोडा आश्चर्य लगा | होटल के अन्य लोग पंकज के इस बर्ताब को देख कर जहाँ एक और ताली बजा कर उसकी सराहना कर रहे थे वही इस जमाने में एक बेटा को अपना फर्ज एक पिता के प्रति करते देख के अजूबा भी लगा |इस का कारन भी साफ है की आजकल के अधिकाँश बेटे अपने पिता को उचित सम्मान भी नही देते |<br />
हरेक बेटा को अपने माता पिता के प्रति आदर भाव के साथ उनके हर दुःख सुख में साये के तरह साथ रहनी चाहिए क्योकि बेटा जब छोटा था तो यही माता पिता उसको अपने हाथो से उसे खिलाया पिलाया और उसकी हर प्रकार की सेवा की देख भाल की पढ़ाया तब जा के वह अब जिस स्थिति में है बन पाया |उसके इस स्तर तक बनाने में उसके माता पिता की जितने त्याग और तपश्यता है उसका कोई मोल नही | </div>
satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0Division No. 21, Unorganized, MB, Canada55.575579441757448 -99.39172671791487830.031800941757449 -140.70032071791488 81.119357941757443 -58.083132717914879tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-38869712748947816862019-12-31T23:55:00.001-08:002020-01-06T23:56:55.332-08:00माता पिता की मनोदशा समझे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-indent: 36.0pt;">
</div>
<ol style="text-align: left;">
<li style="text-align: justify;"><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: x-large;"> </span></li>
</ol>
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; text-indent: 36pt;"><span style="font-size: 14pt;"> </span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: large;">----;;</span></span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: large; text-indent: 36pt;"> माता पिता की मनोदशा समझे ;;--</span></div>
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;">संतोष राज्य सरकारमें बर्ग दो के पद से कार्य करते हुए पिछले वर्ष सरकारी सेवा से सेवानिवृत हुआ था और अपनी पत्नी के साथ पटना में अपने मकान में ख़ुशी ख़ुशी रह रहा था |उसे एक ही पुत्र था और उसने उसकी पढाई बंगलोरे में कराई | उसका पुत्र जिसे वह प्यार से राज कहता है अपनी पढ़ाईसमाप्त करके बंगलौर में ही एक मल्टी नेशनल फार्म में काम करने लगा |उसकी शादी भी वह अपने एक मित्र के पढ़ीं लिखी लड़की से कर दी |दोनो बंगलोरे में ही रहते है |संतोष के बेटे की सेलरी भी अच्छा है और उसके पत्नी भी अपनी समय के उपयोग करते हुए बंगलोरे में ही एक अन्य प्राइवेट फार्म में काम करने लगी |दोनों को मिला के अच्छा पैसा महिना में हो जाता है |दोनों हंसी ख़ुशी से बंगलोरे में रह रहे थे |साल में एक बार वे अपने माता पिता से मिलोने पटना आ जाया करते थे | राज की पत्नी का चुकी मइके भी पटना ही है इस कारन वह बिना अपने सास ससुर को आने की सुचना दिए वह पटना आ जाया करती थी |यह सिलसिला करिव दो तिन सालो से चला आ रहा था | इस बात की जानकारी रहते हुय भी संतोष कभी भी अपने बेटे बहु को इसके बारे में कभी कोई बात नही की |कभी कभी उनकी पत्नी जरुर अपने बेटे से बात करनी चाही लेकिन संतोष ने हमेशा पत्नी को ऐसा न करने की सलाह दे कर उन्हें रोक दिया |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> इधर कुछ दिनों से संतोष की पत्नी की तवियत थोड़ी खराब रहने लगी तो डॉक्टर से दिखाया |डाक्टर उन्हें कुछ दिनों के लिए कही बहार ले जाने की सलाह दी ताकि एक स्थान पर रहते रहते जो इन्हें नीरसता महसूस हो रही है दूर हो सके |चुकी अपनी सेवानिवृति के बाद भी संतोष पटना से अबतक बाहर कभी नही गये अत उसने सोचा की क्योंही कुछ दिनो के लिए अपने बेटे के पास बंगलोरे ही चले जाय |लेकिन इस बात को उन्होंने कभी भी अपनी पत्नी को नही बताई</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;">|</span><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;">इस बिच कुछ आवशयक कार्य बस इनके पुत्र और बहु को पटना आने का प्रोग्राम बना और दोनों पटनाआये लेकिन अपने ससुराल | बंगलोरे जाने के पहले एक दिन के लिए राज पत्नी के साथ अपने माता पिता से भी मिलने आया | रात्रि में जब सभी खाना खा चुके थे तो राज ने अपने माता पिता से कहा की वह कलह ही बैंगलोरे बापस जा रहा है |उसकी फ्लाइट की टिकट पहले से बुक है |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> बात करने के क्रम में संतोष ने अपने बेटे से पत्नी की तवियत के बारे में बताई और कहा की डॉक्टर ने उसे कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाने के लिए कहा है |मै सोचता हूँ की तुम भी अब आ ही गये हो तो तुम अपनी मम्मी की कुछ दिनों के लिए अपने साथ बंगलौर लेते जाओ ताकि कुछ दिन रह लेगी तो तवियत भी थोडा बदल जायेगा |मैं बाद में आउगा तो इसे पटना लेते आयेगे |इतना सुनते ही राज और उसकी पत्नी थोडा असहज हो गयी क्योकि इन दोनों को ऐसी बात सुनने की जरा भी उम्मीद नही थी |थोड़ी देर चुप रहने के बाद राज ने अपने पिता से कहा की पिता जी अगली बार फिर इसके बारे में सोचेगे | अगली सुबह राज और उसकी पत्नी दोनों बंगलोरे के लिए चल दिए |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> इधर पटना में राज ने अपने माता पिता से बात करना भी थोडा कम कर दिया और अगर बात भी करता था तो बड़ी ही सावधानी से ताकि पिता जी कोई ऐसी बात न कर दे |समय भी ठीक से ही कट रही थी | धीरे धीरे चार पांच माह बित गया | अब नवम्बर माह आ गया तो संतोष ने सोचा की सर्दी के मौसम से ही इन्न्की पत्नी को और इन्हें भी थोड़ी परेशानी होती है तो क्यों नही थोड़ी दिनों के लिए बंगलोरे में ही बेटेबहु के साथ रह आये तब तक जब तक पटना में सर्दी रहे |इसे ही सोच कर संतोष पहले अपनी पत्नी से बात की ,जब इनकी पत्नी तैयार हो गयी तब संतोष ने अपने बेटे से बात न कर पत्नी को ही बेटे से बात करने को कहा |सोचा माँ की तवियत के बारे में तो बेटा जनता ही है और माँ अगर फ़ोन करेगी तो बेटा तैयार हो जायेगा |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> एक दिन रात में संतोष को पत्नी ने अपने बेटे से फ़ोन पर बात की |पहले तो माँ बेटे में अच्छी बात हई लेकिन जैसे ही माँ से बंगलोरे आने की बात राज ने सुना उसके होस उड़ गये |एकाएक उसने माँ से थोड़ी अनमनाहट में बात की की माँ अभी आने की क्या जरूरत है |यहं पर अभी हमलोग तो अभी तुस्रत ही एक नए मकान में सिफ्ट हए है और आप नही न जानते की नया मकान में सिफ्ट होने में कितना पैसा एडवांस देना पड़ता है साथ ही यहां शहर भी महगा है |हमलोग जितना दोनों आदमी मिलके कमाते है वह तो पूरा होता नही है और आप लोग आयेगे तो फिर इस छोटे से फ्लैट में एडजस्ट करना मुस्किल होगा साथ ही आपलोग का आने जाने का खर्चा |इतना तत्काल तो हम नही सह सकते</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;">|</span><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;">इसपर माँ ने कही बेटे तुम्हारे पापा को भी अच्छा पेंसन मिलता है वे कह रहे थे की तुम खर्चा की चिंता एकदम नही करो , तुम्हारे पापा तुमको जो भी हमलोग के आने से खर्च बढ़ेगा ब्यबस्था कर देगे आखिर हमलोग भी तो यहां रहते और खाते है तो खर्च तो होता ही है | लेकिन राज अपनी बात पर रहा और माँ को कुछ दिन के लिए आने से मना करने में सफल रहा | </span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;"> </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 34.24px;">समय बीतता गया और सभी अपने अपने काम में ब्यस्त थे |एक दिन संतोष पत्नी के साथ पटना में स्टेशन पर शनिबार को महाबीर मंदिर को दर्शन को गया | पूजा करके बापस आ ही रहा था की उसकी नजर एक शक्स स्वे टकराई | दूर से प्रणाम पाती हुई और धीरे धीरे दोनों आपस में मिले |ये शक्स कोई और नही राज के ससुर के बहनोई थे जो पटना में ही रहते है | बातो ही बातो में संतोष को उनसे जानकारी मिली की राज के सास ससुर आजकल दो महिना से राज के साथ बंगलोरे में रह रहे है और पहली जनबरी के बाद ही उनकौ पटना बापस आने का प्रोग्राम है ,क्योकि उनकी अनुपस्थिति में उनकी(राज के ससुर की ) पटना स्थित मकान की देखभाल उनके आने तक ये ही कर रहे है (अर्थात राज के ससुर के बहनोई )|बात समाप्त होते ही दोनों आदमी अपनी अपनी और चल दिए |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 34.24px;"><o:p></o:p></span></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif;">वहा से जब संतोष पत्नी के साथ अपने घर पहुचे तो</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"> बाले है
|हमलोग बाद में अपना प्रोग्राम बनांते |उसको छिपाने की क्या जरूरत थी |मुझे भी तो
दुःख हुआ ही है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लिकिन फिर क्या किया जाय |बातो
ही बातो में राज<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की माँ ने कही की वह आज ही
राज से बात करेगी इस बारे में ,लिकिन संतोष ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 107%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>समय धीरे धीरे बीतते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गया और मार्च का महिना आ गया |हर साल की तरह
राज को इस बर्ष भी होली के अवसर पर पाटना अपने माता पिता के पास ही आना था|जब उसका
पटना आने का नियत समय आ गया और वह नही आया तो माँ का मन नही माना |माँ ने फोन किया
लिकिन फोन इंगेज आ रहा था | राज की माँ मन परेशान<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हो रहा था |तब ही दुसरे दिन राज का फोन आया | राज ने में से कहा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की माँ तुम्हारी बहु की तवियत इधर से ठीक नही
रहते है डॉक्टर से दिखाया तो उसने आराम करने की सलाह दी है |तुम अगर आ जाते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो हमे और उसे दोनों को आराम होता |जब माँ ने
जोड़ दे के जानना चाही की क्या बात है तो उसने फ़ोन अपने पत्नी को पकड़ा दिए |राज की
पत्नी ने अपनी सास (राज की माँ )से बोली की माँ जी आप दादी बनने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाली<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>है |आप यहां आ जाते तो अच्छा होता |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 107%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राज की माँ सब कुछ जानती है की जब उसे जरूरत
थी तो बेटे ने कैसे बहाना बना दिया और अपने सास ससुर के आने के कारन उसने अपनी माँ
को आने न देने का कितना बहाना बनाया |राज के पिता संतोष भी तो राज से काफी खफा थे
लेकिन दोनों दादा दादी बनने के ख़ुशी में अपनी नाराजगी और खीज को भुला के तैयार हो
गये <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>क्योकि उन्हें दादा और दादी बनने की
जो खबर मिली |</span><span lang="EN-GB" style="line-height: 107%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="font-size: large;"> तय समय को संतोष और उसकी पत्नी अपने बेटे के
पास जाने को </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="font-size: large;">बंगलोरे के लिए प्रस्थन कर गये |</span></span><span lang="EN-GB" style="font-size: x-large; line-height: 107%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; line-height: 107%;"><span style="font-size: x-large;"> </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-indent: 36.0pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"><span style="mso-spacerun: yes;">
</span></span><span lang="EN-GB" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%; mso-bidi-font-family: "Nirmala UI";"><o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-27867514645286154062019-01-23T03:31:00.003-08:002019-04-18T03:17:06.377-07:00सहिष्णु देश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
भारत विश्व का बड़ा प्रजातांत्रिक देश है।इस देश मे सभी धर्मो के मानने बाले,बिभिन्न भाषाओ के बोलने बाले बड़े ही मेल जोल से आपसी सद्भभाव की भावना से ओतप्रोत होकर सदियो से रहते चले आये है।देश ने अपने मे कई धर्मो और भाषाओ को समाहित ही नही की बल्कि उनकी अभिरक्छा और सम्बर्धन भी की।सभी धर्मों के मानने बाले बिना कोई भेद भाव के अपनी योग्यता और छमता के आधार पर उन्नति और विकास हर छेत्र में किया है।<br />
दुनियां में भारत देश जैसा कोई और सहिष्णुता बाला देश नही मिलेगा।इस देश मे हर नागरिक बिना कोई डर भय के अपनी बात किसी भी समय किसी भी स्थिति में रख सकता है जिसमे किसी सरकार या संस्थान का कोई हस्तछेप नही होता ,क्योकि देश का हर नागरिक को देश की संविधान ने बिना जाति,धर्म,लिगं,स्थान,आदि के भेद भाव के प्रदान की है ।<br />
इस देश मे नागरिकों की संबैधानिक अधिकारों की रखबली के रूप में हमारे संविधान में शशक्त न्यायपालिका की व्यवस्ता कर रखी है जिनके पास देश का कोई नागरिक अपनी अधिकार की सुरक्छा के लिए किसी भी समय जा सकता है।<br />
फिर भी देश मे कुछ सम्पन्न और अपने को तथाकथित बुद्धिजीवी प्रगतिशील कहने बाले सुबिधा सम्पन्न लोगों को जो अपनी बात बिना कोई भेद भाव के कह रहे हैं यह देश असहिष्णु और असुरक्छित लगता है।ऐसे लोग बतानुकूलित कमरों में बैठ कर आराम से महंगी खानो या पेय का घुट पीते हुए सरकार की आलोचना खुलेआम करते है ।वही दूसरी ओर देश की सामान्य नागरिक जो खुशी से देश मे रहते है उन्हें ना तो कोई डर लगता है और न ही देश उनके लिए असहिष्णु और असुरक्छित लगता है ।उन्हें तो देश मे कोई भेद भाव नजर भी नजर नही आती है।ऐसे नागरिक को देश उनकी मातृभूमि है जिसकी आलोचना ऎसे नागरिक को मंजूर नही।ये हर हाल में देश के लिए अपना सर्वश्व नौछावर को ततपर रहते है।ऐसे देश के नागरिकों को सत सत नमन।<br />
लेकिन सब के बाबजूद हमारे देश मे कुछ सम्पन्न और तथाकथित आपने को बुद्धिजीवी वर्ग कहलाने बाले व्यक्तियों को इस देश मे रहना सुरक्छित नही लगता है।हमेशा उन्हें डर लगता है भले वे सुरक्छा घेरे में रहते हों।ऐसे लोगो मे देश की कुछ नेताओ के साथ साथ बड़े बड़े कलाकारों,तथाकथित लेखको,विचारको तक सुमार हैं।<br />
जब जब देश के किसी राज्य में चुनाव का मौसम आता है या देश मे आम चुनाव आने को होता है ऐसे राजनीतिक विचारक,लेखकों,बुद्धिजीवियो,कलाकारों,और सामाजिक तथाकथित कार्यकर्ताओं को देश रहने लायक नही दिखता है, उन्हें देश की हालात असहिष्णु और डरावना लगता है ।ऐसे लोगो के द्वारा दूरदर्शन पर,समाचार पत्रों में,पत्रिकाओ में,सेमिनारों में बड़ी बड़ी लेखों को प्रकाशित करते हैं, वक्तव्य देते हैं और फिर भी वे सभी दृष्टिकोण से देश मे सामान्य जन से ज्यादा सुरक्छित और सुरक्छा में रहते हैं।बास्तब में ये लोग अंतरराष्ट्रीय भारतीय षड्यंत्र के हाथों खेलते है जिन्हें देश की उन्नति और अंतरराष्ट्रीय सम्मान रास नही आता है</div>
satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-40402697367407256232018-12-13T23:26:00.000-08:002018-12-13T23:54:37.071-08:00संस्कार और उसका महत्व <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="mso-spacerun: yes;"> <b> </b></span><span lang="HI" style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"><b>संस्कार और उसका महत्व</b></span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%; mso-bidi-font-family: "Nirmala UI";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br />
<ul style="text-align: left;">
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt;">संस्कार हमारी जीवन में जीवन को
पूर्ण बनाने का एक अभीष्ट गुण है ,जिससे हम पूर्ण हो के शुद्ध आचरणों से अलंकृत
होते है और मनुष इन्ही गुणों के कारन </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt;">अपनी
सहज प्रवृतियों का सम्पूर्ण विकाश करते हुए अपने स्वम् और अपने समाज का कल्याण और
विकाश करता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">संस्कार मनुष्य के अंदर अपने बुरे कर्मो को दूर करने की शक्ति के साथ साथ
अच्छे कर्मो और कृतो </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">को अपनाने के गुणों
का विकाश करता है जिससे मनुष स्वम् के साथ साथ अपने परिवार और समाज का विकाश को और
अग्रसर होता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">संस्कार से </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">सामान्य अर्थ में हम
समझते है कि संस्कार मनुष का वह गुण है जो उसको एक अच्छी और शभ्य , सुसंस्कृत
मनुष्य बनने की गुणों को उसके अंदर विकाश करता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">संस्कार मनुष्य को बुरे विचारो ,अज्ञानता ,अंधकार से बाहर निकाल कर हमारे
आचार,विचार को शुद्ध कर अच्छे कार्यो और ज्ञान –विज्ञानं से युक्त करता है |इससे
हमारा सामाजिक और अध्यात्मिक जीवन पूर्ण होता है |हमारे व्यक्तित्व से निर्माण में
काफी सहायक होता है |मेरे मन,वाणी और कर्म को शुद्ध ब्नानता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हमारे समाज में संस्कार बच्चो अपने बड़ों से
ग्रहण करते ,सीखते है | इस प्रिक्रिया का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान
है ,जिसकी नीव मनुष्य की जन्म </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">लेने के साथ
ही प्रारंभ हो जाता है| या यो कहा जा सकता है की बच्चा जब माँ के गर्व में रहता ही
तभी से इसमें संस्कार के गुणों का बिकाश शुरू हो जाता है |बच्चे की माँ की सोच</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">,स्वाभाव और प्रकृति जैसा होगा उस बच्चे पर
उसका प्रभाव भी उसी सोच,स्वाभाव और प्रकृति </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">का पड़ता है |इसका सबले अच्छा उदाहरण और
प्रसंग</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हमारे धर्म ग्रन्थ महाभारत में आता
है जब अभिमन्यु अपनी माता के गर्भ में था तो अर्जुन अपनी पत्नी को युद्ध के
चक्रव्हू से कैसे निकला जाय </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">की रणनीति
सुना रहे थे ,लेकिन</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">में ही उनकी पत्नी
कहानी सुनते सुनते बीच में ही</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">सों गयी और
पूरी रणनीति नही सुन स्की जिसका नतीजा सभी जानते है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">परिवार समाज में बच्चा जिन जिन कार्यो को अपने बड़ों से क्रमबद्ध रूप </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">सीखता है ,उसी सिखने की प्रक्रिया को संस्कार का
आरंभ माना जाता है जिसे बच्चा बचपन में ही प्रहण करता है | बच्चा अपने परिवार में
अपने बड़ो से जिन आदतों को अपने बचपन में देखते </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हुए बड़ा होता है ,जिसे देख कर करते </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हुए बड़ा होता है उन्ही आदतों का प्रभाव उस पर
पड़ता है और </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">इसी प्रक्रिया को संस्कार की
नीव डालना कहा जाता </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">है, जो बचपन में ही
पड़ता है |</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">बच्चा जब भी अच्छी और बुरी कार्यो
के देखता है उसकी अंदर वैसी ही आदत पड़ती है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">जब हमारे परिवार में बड़े ,बुजुर्ग आते है या बाहर जाते है तो घर छोटे बच्चो
को बताते है की बेटा आपके रिश्ते में चाचा ,दादा ,या जो भी रिश्ता होता है उसे
बताते है और तदनुसार </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">उन्हें पैर छु के
प्रणाम करने की कहते है और तब बच्चा यह जनता है की अपने से बड़ो को कैसे प्रणाम
किया जाता है |यहाँ तक की बच्चे अपने से बड़ो को जब ऐसा ही करते देखते है तो उसे
नकल भी करते है और इसी तरह बे सीखते है |हम घर में जब कोई कार्य करते है तो बच्चे
ध्यान से देखता है और उन्ही कार्यो को नकल करते है | |इस तरह की सिखने की गुण को
ही संस्कार का प्रारंभ कहते है जो परिवार से ही प्रारंभ होता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">आप अपने बडो ,बुजुर्गो और दुसरे के साथ जैसा भी ब्यवहार करते है आपके
परिवार में आपके छोटे बच्चो पर उसका काफी असर पड़ता है और उही उसको आदत और स्वभाव
बन जाता है |;अगर उसने अपने से अच्छी आदते और शिक्छा ग्रहण की तो उसमे अच्छी आदते
पड़ेगी बरना बुरा |यही आदते बच्चो</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">में
संस्कार पैदा करना</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">कहते है |आप जैसा करेगे
आपके छोटे वैसा ही सीखेगे |इसीलिए कहा जाता है की आप छोटे बच्चो के सामने ना तो
गलत काम करे और ना गलत भाषा का इस्तेमाल करे क्योकि इसका असर बच्चो पर पड़ता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हिन्दू शस्तो में संस्कार का मतलव उस धार्मिक कार्यो से था जो किसी व्यक्ति
को अपने परिवार</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">,समाज के विकाश और उन्नति के योग्य सदस्य बनाने
के उद्देश्य से उसके अंदर सद्गुणों का विकाश कर मनुष्य के शरीर ,मन ,मष्तिष्क को
पवित्र करने को था जिससे व्यक्ति के अंदर अभीष्ट गुणों का जन्म हो सके |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हमारे धर्म में संस्कारो का प्रारंभ जीवन में इस अबस्थाओ में ही हो जाता है
जिनमे –ग्राभाधारण , संतान्नोत्पत्ति , उसके बाद नामांकरण , अन्नप्राशन , चूडाकरण
, उपनयन , ब्रह्मचर्य , बिबाह संस्कार के माध्यम से अपने गृहस्थी जीवन में मनुष्य
प्रवेश करता है जहाँ से मनुष्य पुनः इन्ही संस्कारो को अपने बाद की पीढ़ी में डालते
हुए अपनी अंतिम संस्कार की यात्रा की और प्रस्थान करता है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हमारे अभी के समाज में आजकल इन्ही संस्कार की कमी हो गयी है जिसका परिणाम
है कि </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">हमारे परिवार ,समाज की अगली पीढ़ी के
बच्चो में इन संस्कार रूपी गुणों का आभाव हो गया है और समाज में चारो और तनाव,
गुस्सा के साथ साथ बुरी भावनाओ का आगमन हो गया है जिससे हमारा समाज बिकृत विचारो
और कृतो के दलदल में फस</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">गया है |</span></li>
<li><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">समाज के बड़े लोगो की यह जवाबदेही है की वे अपने अच्छे आचरणों और विचारी से अपनी
अगली पीढ़ी को अवगत करावे |आपके बच्चे आपके कार्यो और विचारो को जव देखेगे तो उसका
वे अनुसरण करेगे | कहा भी </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">जाता है की
child</span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;"> </span><span style="font-family: "nirmala ui" , sans-serif; font-size: 14pt; text-indent: 36pt;">learn by doing .इसलिए आप अपने आदतों
में सदाचार ,सद्गुण लाये और अच्छे कार्यो की करे ताकि आपकी अगली पीढ़ी सदाचारी,
शभ्य ,बने |</span></li>
<li> </li>
</ul>
</div>
<br /></div>
satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-1442142741802642652018-06-30T23:12:00.002-07:002019-04-18T02:59:07.342-07:00कैथी लिपि <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कैथी लिपि-------<br />
<div>
</div>
<div>
कैथी लिपि जिससे अंग लिपि भी कहा जाता है | देश स्वतंत्र होने के पूर्व यह लिपि देश के अधिकांश भागो की जन लिपि थी ऐसा कहा जा सकता है | यही कारन था की शेरशाह जैसे अधिकांश शाशको ने अपने राजकाज के लिए इसी कैथी लिपि को राजकाज की सञ्चालन की भाषा और लिपि अपनाई और इसे ही बिकसित ,और संरक्छन दिया। उस समय सामान्य जन की लिपि कैथी लिपि ही हुआ करती थी राजकाज के सामान्य कार्य के अलावा लोगो की दैनिक लिखा पढ़ी की एक महत्वपूर्ण लिपि थी। </div>
<div>
कालान्तर में जब देश पर अंग्रेजो का शासन हुआ करता था उस समय अंग्रेजी राज्य में भी कैथी भाष तो गुजरात के कच्छ से ले कर कोशी छेत्रो तक की राजकीय लिपि बनाई गयी था। सरकार के सारे कार्य के अलावा उस समय के न्याययिक कार्यो के साथ साथ आम जन की कैथी ही सर्वमान्य और समृद्ध लिपि थी इस भाषा लिपि के कारण अंग्रेजो और उसके पूर्व के जमाने के सभी सामान्य जन की लिपि कैथी लिपि ही थी . कैथी भाषा में उस समय के अधिकतर कागजात ,पत्र आदि लिखी मिलती थी और अभी भी मिलती है |पुराने सरकारी दस्ताबेजो को पढने के लिए तो अभी भी राज्य और कन्द्रीय सरकारों को कार्यालयों में बजापते सूचना प्रसाशित कर इस भाषा और लिपि के जानकर लोगो को ऐसे कागजातों को पढ़ने के लिए राशी भुगतान कर रखा जा रहा है क्योकि उस समय के बहुत सारे कागजात में क्या लिखा है जानना जरूरी है |खास कर जमीन जायदाद के मामले में तो और जरूरी होता है जहाँ पुराने सारे के सारे कागजात कैथी लिपि में ही लिखी मिलती है | .<br />
जब देश आजाद हुआ तो उस समय की सरकार ने इस भाषा पर ध्यान नही दिया और घिरे धीरे यह कैथी लिपि लुप्त होते चली गयी . मैंने अपने बचपन में देखा है की मेरे पिता जी आपस में जिन पत्रों को लिखा करते थे वे सभी पत्रों की लिपि कैथी लिपि ही हुआ करती थी | अभी भी मेरे घरो में कैथी लिपि की लिखी हुई कई दस्ताबेज मौजूद है |.<br />
जिस तरह देश में अन्य लिपिओ का विकाश हुआ उसी तरह कैथी लिपि को किसी ने विकाश पर ध्यान नही दिया और यह लिपि धीरे धीरे लुप्त के कगार पर आ गयी है |.कैथी लिपि पहले मुख्य तौर पर कायस्थ जाती की लिपि थी . कायस्थों की मुख्य जीविका का साधन यह लिपि थी . पहले गाँव घरो में अधिकतर लोग जो पढ़े लिखे नही होते थे अपने पत्रों को या कोई भी सरकारी कागजात या फिर जमीन,घर आदि के कागजात को पढ़ाने केलिए इन्ही समुदाय के पास जाते थे |इस समुदाय के लोगो का मुख्य जिविकी का श्रोत था .लेकिन आजादी के बाद इस समुदाय के जीवन निर्वहन के साधन को बनाये रखने पर कोई ध्यान नही दिया गया | इसका परिणाम यह हुआ की इस लिपि के जानकारी रखने बालो की तायदाद धीरे धीरे छिन्य होती चली गयी | अब तो स्थिथि यह है की इस लिपि को जानने बालो को बड़ी मुस्किल से खोजी जाती है | यहाँ तक की इस लिपि के बिषय में अब लोग जानते भी नही है की ऐसी भी कोई लिपि कभी रही थी |<br />
जहाँ तक मेरी जानकारी है जो अपने पिता जी से सुना था की कैथी लिपि की उत्पत्ति कायस्थ शब्द से हुई है |देश में अंग्रेजो की शासन के पूर्ब मुगलकालीन शासनों में भी कैथी लिपि देश की राजकीय भाषा के रूप में स्थापित थी |इसके बाद अंग्रेजो के शासन काल में भी इस भाषा का उपयोग राजकीय दस्तावेजो में मिलता है ,इस से यह भी प्रमाणित होता है की इस भाषा का उस समय को राजकाज पर पूरा और स्पस्ट छाप था |उस समय के जमीन ,लगानो ,क़ानूनी दस्तावेजो ,दानपत्रो ,पत्रों में स्पस्ट रूप से देखा जा सकता है |<br />
कैथी भाषा और इसकी लिपि को मुख्यत ; तीन प्रकार थे जिनका तात्कालिक समय में उपयोग किया जाता था |उनमें ---तिरहुत कैथी लिपि , मगही कैथी लिपि , और भोजपुरी कैथी लिपि | इस लिपि का बिस्तार जहाँ तक मुझे बचपन में पिता जो द्वारा बताया गया था और जो मुझे याद है के अनुसार असाम , मगध , बंगाल , गुजरात के कछ छेत्र तक था |इसके साथ साथ इस लिपि का बिस्तार उत्तर प्रदेश , उड़ीसा , अवध , के साथ साथ देश के बड़े हिस्सों में था और इन छेत्रो की सरकारी कामकाज की लिपि यही कैथी लीपि थी |कैथी लिपि काफी सम्ब्रिध लिपि उस जमाने की थी |<br />
कैथी लिपि की वर्णमाला कुछ इस प्रकार है जो मैंने अपने स्तर से लिखी है --<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOOVmdR6Us_qq9E_J2J5uweH6edJmwcnjf-GH1IKKMJkdweBcuaiO083WfqJ4PXjoPaVWJgkkPM5A7Tb_oOPmYvJ7gltWW7zpu4IYRvwfwIrAUCABY3Uw4c3CPM2ld5nUA41LHlMajtPf-/s1600/Screenshot_20180701-110043.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOOVmdR6Us_qq9E_J2J5uweH6edJmwcnjf-GH1IKKMJkdweBcuaiO083WfqJ4PXjoPaVWJgkkPM5A7Tb_oOPmYvJ7gltWW7zpu4IYRvwfwIrAUCABY3Uw4c3CPM2ld5nUA41LHlMajtPf-/s320/Screenshot_20180701-110043.png" width="180" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6XsWd_wiOYN6nz0i_OcVuhrDoKt-ODs9Pd6AmZ5ps1tOfW1q0vcmR6uojhdyiH9PzEajYwRMVixcU6Xu1osK13rhysAnjtc9xZYIURVfAGYTGzgcLbyGQTQs2pI_wgfq31BNz6BnvAo6u/s1600/Screenshot_20180701-110032.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6XsWd_wiOYN6nz0i_OcVuhrDoKt-ODs9Pd6AmZ5ps1tOfW1q0vcmR6uojhdyiH9PzEajYwRMVixcU6Xu1osK13rhysAnjtc9xZYIURVfAGYTGzgcLbyGQTQs2pI_wgfq31BNz6BnvAo6u/s320/Screenshot_20180701-110032.png" width="180" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd6MfDnRZLrbTx3BezfAiWjXVEHUh47N9FRk6oWozJSuRE3k7nMoplWiLsQS_nJWr7M5h2cL_sWAZZlw0y0gfMhl5drnYRi1lo-NjOg9lYxJA9r96hFpEem44bqQl4pghT_Xq1xjNq_KIN/s1600/Screenshot_20180701-105944.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd6MfDnRZLrbTx3BezfAiWjXVEHUh47N9FRk6oWozJSuRE3k7nMoplWiLsQS_nJWr7M5h2cL_sWAZZlw0y0gfMhl5drnYRi1lo-NjOg9lYxJA9r96hFpEem44bqQl4pghT_Xq1xjNq_KIN/s320/Screenshot_20180701-105944.png" width="180" /></a></div>
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इधर मैंने बिहार के दैनिक समाचार पत्रों में देखा है की बिहार सरकार के द्वारा भी कुछ लुप्त हो रही लिपि और भाषाओ को पुनः जागृत करने के प्रयास में इस कैथी भाषा और लिपि का भी स्थान दिया गया है |बस्ताव में राज्य के कैथी भाषा के जानकार लोगो के लिया एक अच्छी खवर है |<br />
अगर इस लेख को लिखने में कुछ कमियां हो तो मुझे भी जानकारी होनी चाहिये |वैसे मै कोई भाषा का जानकार नही हूँ |वस इस भाषा की उत्पत्ति समुदाय से हूँ और दिमाग में आया की इसके बारे में जो भी मेरी जानकारी है में अपने बिचार लोगो से साझा करू |इसी सोच से इस लिख को प्रस्स्तुत किया हूँ |<br />
शेष टिप्पणी की प्रतिच्छा में |.<br />
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satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-42231188347683146512018-06-18T01:54:00.002-07:002018-07-01T08:12:28.728-07:00जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही<br />
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<div style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-top: 6px;">
जब मे छोटा था और अपने परोस के गाँव के सरकारी स्कूल में पढाई करता था तब मेरे पिता जी मुझे घर पर पढ़ाने के लिए एक टीचर रखे थे जो मेरे गाँव के ही थे और मुस्लिम थे .वे मेरे घर पर रहते थे और वहीं उन्हें खाना और पढ़ना रहता था | वे मेरे अलावा मेरे चचेरे भाई को भी पढ़ाते थे | मुझपर उनकी थोड़ी ज्यादा कृपा दृष्टी रहती थी |<br />
<br />
एक दिन उन्होंने जो एक कहानी हम लोगो को सुनाई. उसकी गूंज आज तक मेरे कानो में मौजूद है | कभी कभी वे शब्द अनायास कानो में बजने लगते हैं जैसे कि आज एकाएक महसूस हुआ | मै उस कहानी को आपके साथ साझा कर रहा हूँ -------<br />
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एक शहर में एक संपन्न व्यक्ति रहते थे जिनका अपना कारोबार शहर में था . बड़ा खुशहाल परिवार था और उस परिवार में ज्यादा सदस्य भी नही थे . उनकी पत्नी भी काफी सुशिल सदभावी और सुसंस्कृत धर्मपरायण महिला थी | शादी के कुछ दिन बाद उस व्यक्ति के घर में एक बालक का जन्म हुआ | काफी धूमधाम से उस बालक की आने के अवसर पर जश्न मनाया गया. कुछ दिन और जब बीता और बालक कुछ बड़ा हुआ तो उनकी पत्नी की तबियत खराब रहने लगी | चिकित्सक से देखने पर उन्हें टी ०बी० की बीमारी बताया गया | बहुत पहले यह बीमारी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी |<br />
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कुछ दिनों के इलाज के बाद उनको पत्नी का इंतकाल हो गया | घर के और लोगो ने तथा परिजनों ने उनपर दवाब बनाया कि बच्चा छोटा है घर में देखभाल के लिए कोई नही है इस कारन आप दूसरी शादी कर ले | लेकिन उस भद्र पुरुष ने किसी की एक ना सुनी और दूसरी शादी नही की | अपनी कारोवार के साथ साथ अपने बालक को बड़े लाड प्यार से पढ़ाया और बड़ा किया |लड़का उनके ही साथ उनके कारोवार में हाथ बटाने लगा | धीरे धीरे बालक शादी के योग्य हो गया | पिता ने अपने पिता धर्म निभाते हए उसकी शादी कर दी | घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया |<br />
<br />
कुछ दिन और बीतने के बाद पिता ने सोचा, अब मुझे अपना सारा कारोबार अपने बेटे को सौप कर मुझे आराम की जीबन बिताना चाहिए | बेटा से अपने मन की बात साझा किया |बेटे ने आदर्श पुत्र की तरह ही पिता की इक्छा का सम्मान किया |<br />
पिता अपना सारा कारोवार अपने बेटा को सौप कर आराम की जीवन जीने की लालसा से जी रहा था |<br />
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कुछ ही दिन बीते थे की एक दिन पिता खाने के टेबल पर था और उसकी पुत्र बधू उसको खाना परोसी थी |जब खाना परोस कर लायी तो बाप ने देखा की उसके सामने रोटी लायी गयी वह बिना घी के थी | इन महाश्य की आदत थी की जब भी वे खाना में रोटी खाते थे तो रोटी में घी लगना आवश्यक था |पिता ने कुछ नही कहा और खाना खा लिया | जब वे खाना कहा रहे थे तो बेटा जो उनका अब सारा कारोवार सभाल रहा था अपने काम से वापस घर आया, उसने अपने पिता को खाता देखा था |<br />
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बाद में उसकी पत्नी ने उसे भी खाना खाने हेतु खाना परोस कर लायी | उसके खाने में उसने देखा की उसको जो रोटी खाने को रोटी दी गयी उसमे घी लगी है |उस समय बेटे ने कुछ नही किसी से बोला और चुप चाप रहा |<br />
<br />
दुसरे दिन पुत्र ने अपने पिता से कहा कि पिता जी अब आप पुनः अपना कारोवार सभाले और मै आप के कारोवार में एक कर्मचारी की भांति काम करूँगा और अब मै आप के साथ भी नही रहूँगा | मै अब अलग एक किराये के मकान में अपनी पत्नी के साथ रहूँगा | पिता ने समझाया, लेकिन बेटा नही माना और अपने पिता का घर छोड़ कर एक किराया के मकान में चला गया | पिता ने इतना कहा की कारन क्या था अब तो तुम मुझे बताओ |<br />
<br />
पिता के कहने पर पुत्र ने सारी कहानी बताई और कहा कि पिता जी, जब मै ने देखा की आप के द्वारा रोटी में घी लगाने को कहने पर भी घी ख़त्म होने को बात बताई गयी और घी नही मिला ,उसी समय मेरे खाने में रोटी में घी लगा मिला तो मै ने तय किया कि आराम से बिना कुछ किये अगर किसी को कुछ मिलता है तो उसकी कीमत वह नही अंकता है |<br />
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इस बात को सुन कर उसकी पत्नी को अपने किये पर काफी अफसोस हुआ और उसने पिता से माफी मांगी | फिर सभी पिता पुत्र पुत्रबधू साथ साथ रहने लगे |<br />
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मुझे लगा की मै उतनी पुराणी कहानी आपके साथ सेयर करू इसलिए मै ने यादास्त को तरो </div>
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satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-80626573248530610752014-06-12T21:13:00.001-07:002017-07-22T03:44:20.237-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्या विचार नहीं किया जा सकता .........<br />
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मै अपने आसपास काफी दिनों से ये देख रहा हूँ की आज कल हमारे समाज के अन्दर एक ऐसा बर्ग काफी तेजी से फैल रहा है जिनकी शौक है पालतू जानवरों को पलना | मै यह नहीं कहता हूँ या सोचता हूँ की जानवरों को पलना गलत है | वल्कि यह तो अच्छी वात है की लोग अपने घरो में पालतू जानवर को पाले | जानवरों के पलने से कई तरह के फैदा होता है | आजकल तो सरकार और गैरसरकारी कई ऐसे संसथान है जो आमआदमी के विच इस प्रकार की प्रविर्ती को वडावा देते है |<br />
लिकिन फिर भी इनसब बातो के होने के बाबजूद भी इस प्रकार की बात जिसका मै जिक्र करने जा रहा हूँ पर गौर करना भारत जैसे देश के लिए मेरी समझ से आवश्यक लगता है |<br />
आज कल हमारे आसपास कई ऐसे परिवार देखने को मिल जाते है जिनका शौक पालतू जानवर पलने को है | खास कर के पालतू जानवरों में देशी या विदेशी नश्ल की कुत्ता को पलने की | मेरे आगे फिछे , अगल बगल में काफी ऐसे परिवार रहते है जो आर्थिक दशा के लिहाज से एकदम सामान्य आर्थिक हालात बाले है , लेकिन वे भी कुत्ता पाले हुए है | मझे उनसे कभी कभी बाते करने का मौका मिलता है तो वे बड़े ही गर्व से मुझे उस कुत्ते की देखभाल करने से ले कर उसकी चिकित्सा पर होने बाले खर्च के बारे में काफी विस्तार से बताते है | उन्हें उस छन मै उनकी चहरे की आव भाव को देखता हम तो मुझे ऐसा आभास होता है की वे अपने को काफी गौरवांन्वित महसूस करते है |<br />
सामान्यतया एक कुत्ता को पलने पर काफी ध्यान देना परता है | जैसे कुत्ता को सामान्य से उसके लिए बनाये गए खास प्रकार के खाने की सामग्री को बाजार से खरीद कर लाना परता है | इस प्रकार के खाने के सामान अच्छे खासे दामो पर लिया जाता है | उसको प्रतिदिन या एक दो दिन बिच करके मांसाहारी खाना देना परता है | उसकी देखभाल भी अपने आप में काफी खर्चीला होता है | प्रतिदिन उसे स्नान करने से लेकर इसकी साफ सफाई , इसकी डाक्टरी सलाह और दवाई पर खर्च , इसके रहने और इसकी देख्भाल के लिए एक आदमी खास तौर पर रखना परता है | आज कल का कुत्ता तो पहले के कुत्ता से काफी आधुनिक हो गया है | आज तो इस तरह के सौक रखने बाले अपने ही तरह इस कुत्ता को भी बतानुकुलित में रखते है , उसे बतानुकुलित गाड़ी में अपने साथ घुमाते है . | शाम सवेरे उसको नित्य कर्म के लिए बाहर जरुर ले जाते है |उसको हवाखोरी के लिए प्रतिदिन गाड़ी से सैर कराते है |<br />
इसे लोगो की एक और प्रविर्ती होती है की वे अपने कुत्ता को अपने साथ गाड़ी पर घुमाने के साथ साथ इससे काफी खेलते है | अपने साथ अपने सोफा अपने बिछवान पर साथ में सोलाते भे है | अपने मुख और चेहरे को कुत्ता से और कुत्ता के मुख को अपने से काफी लार प्यार से चुमते है | उससे काफी खेलते है | उसे अपने गोद में ले कर घुमाते है और इस हालात में वे अपने को काफी गौवान्वित महसूस भी करते है |<br />
इस प्रकार के शौक पलने वाले को प्रति माह एक अच्छी राशी खर्च होती है | जहाँ तक मै समझता हूँ ,इन मामलो में कम से कम पांच हजार से ले कर वीस - पचीस हजार रूपये तो अवस्य ही खर्च होते होगे | ऐसे लोग काफी यह महसूस नहीं करते है की जितना पैसे वे इस पर खर्च करते है इतना पैसे से भी कम पैसे प्रतिमाह कमाने वाला ब्यक्ति अपने साथ साथ अपने परिवार का भरन पोसन करते है |<br />
ऐसे ब्यक्ति में अगर थोड़ी भी समबेदना होती और अपने आस परोस में ऐसे हजारो अनाथ बच्चो को देखते और इनमे थोड़ी भी दया भाव आता तो अगर ऐसे बच्चो की थोड़ी आर्थिक मदद करने की भावना हो जाये तो उस अनाथ बच्चो का भविष्य बदल जायेगा |<br />
अगर ऐसे आदमी एकाध अनाथ बच्चो को adopt कर उसको परवरिस करे तो वह अनाथ बच्चा भी एक दिन देश का सभ्य और सुसंस्कृत नागरिक बन कर न अपने बल्कि अपने समाज और देश की सेवा कर पायेगा | और ऐसे बालक में यह भावना पनपेगी की मै भी अपने साघन से एक और अनाथ बच्चे को मदद करू |<br />
हमारे देश में लाखो लावारिस बच्चे सड़क , रेलवे स्टेशन , बाजारों ,चौक चौराहों पर धूमते रहता है | ऐसे बालक रास्ता भटक जाते है और कई प्रकार के गलत और असमाजीक कार्य करते है | ऐसे लडको में अपराधिक भावना पलती और फूलती है और एक दिन ऐसे ही बच्चे अपराध जगत के नमी अपराधी बन जाते है जो समाज और देश के लिए घातक होता है |<br />
क्या यह अवश्यक नहीं है की कुत्ता ऐसे सौक को पलने बाले थोडा इस पर भी घ्यान दे और सोचे | उनके इस प्रयास से उस अनाथ बालक का तो भला होगा ही लेकिन उससे ज्यादा भला मानवता और समाज तथा देश का होगा | एक सभ्य नागरिक, सभ्य समाज और सभ्य तथा सवाल देश बनाने में वैसे महानुभाभो का जो योगदान होगा वह अतुलनीय होगा और उनके धन बल का सही उपयोग भी होगा | इससे इन ब्यक्ति को जहातक मै सोचता हूँ अपार अन्तः सुख और आन्नद की अनुभूति होगी |<br />
<br />
इन्ही बिचार के साथ अब मै अपनी लेखनी को बिराम देता हूँ |<br />
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satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-6718781055162354702012-10-31T09:19:00.000-07:002012-10-31T09:19:12.848-07:00तब तक ही सही ये सपने <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए,<br />
<br />
मैंने भी कुछ सपने सजाये है ,<br />
<br />
मैंने भी कभी कुछ सोचा था ;<br />
<br />
मैंने भी कभी कुछ सपने सजाये थे ,<br />
<br />
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए।<br />
<br />
क्या सपने सजाना गुनाह था ,<br />
<br />
क्या सपनो को देखना गुनाह था ,<br />
<br />
नहीं ,तो देखा था मैंने भी सपने ;<br />
<br />
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए।<br />
<br />
जब तक सपना नहीं सजता ,<br />
<br />
जब तक नीद नहीं खुलती ,<br />
<br />
तब तक सिर्फ तब तक देखने दे सपने ;<br />
<br />
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए . .<br />
<br />
सपने में सब कुछ ऐसा लगता है,<br />
<br />
जैसे की वाश्ताविकता के पास हो,<br />
<br />
इतने पास की कभी दूर न लगे;<br />
<br />
तब तक ही सही ये सपने ,<br />
<br />
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए .<br />
<br />
मैंने भी कुछ सपने सजाये ,<br />
<br />
मैंने भी कुछ सोचा था आपके लिए ;<br />
<br />
आपके लिए और सिर्फ आपके लिए .<br />
<br />
----------------------- </div>
satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-72416384609629525962012-08-12T02:28:00.000-07:002012-08-12T02:35:34.131-07:00आज के युवाओ में भटकाव का कारण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
</div>
<ol style="text-align: left;"><ol>
<li style="text-align: left;"><span style="text-align: justify;"> इधर कुछ अर्सो से देश के चाहे एलोक्ट्रोनिक मीडिया हो या प्रिंट मिडिया उसमे प्रमुखता से समाचर आते रहते है जिस में से ऐसा लगता है की हमरे देश के युवा वर्ग निचितरुप से रास्ता से भटक गया है .उसमे अपनी सभ्यता ,संस्कृतियों,और मान्यताओ की कोई अहमियत नहीं रह गई है .ऐसा नहीं है की ये बात देश के सभी युबाओ पर सामान रूप से लागु होती है . हमारे देश के बहुतायत में युबाओ में देश समाज और पारिवारिक संस्कार भरी है जिनके बदौलत हमारा देश अभी भी अपनी सभ्यता ,संस्कृति और मान्यताओ को न केवल सहेज कर रखे हुआ है बल्कि अपनी पीढ़ी के साथ साथ आगे भी बढ़ाते जा रही है .</span></li>
</ol>
</ol>
<br />
समाज ,देश या परिवार की अच्छाई या बुराई की पहचान के लिए उस समाज ,परिवार या देश की कुछ लोगो को उदाहरण के लिये लिया जाता है और उसी के अधर पर उसका आकलन किया जाता है .हमारे देश की युबा बर्ग को बदनाम करने के पीछे कुछ भटके युबाओ का हाथ होता है लेकिन बदनामी तो युबा बर्ग की होती है .तो ऐसी हालात में युबा बर्ग के अन्य सदस्सो की जिम्मेबारी बनती है की वे अपने बीच भटके साथियो को सुमार्ग पर लाने के लिए आगे आये.<br />
अब आइये हम देखते है की आज के भटकते युबा बर्ग के पीछे वह कौन से कारण है जिनके चेलते युबा समाज के चन्द युबा अपनी सही रास्ते से भटक गए है .जब हम इसके पीछे कारणों को देखते है तो मुझे तो उन युबाओ के भटकाव के पीछे उनका कम मगर उनके माता -पिता का ज्यादा हाथ नजर अता है .अब आप कहेगे की भटकता तो युबा है तो ऐसी हालात में उनके माता पिता को कैसे दोष दिया जा सकता है .तो आइये हम इसकी कारणों का परताल करते है ताकि आप मेरी तर्क को सही करार दे सके ---------<br />
कारण न० १ -- हमारे परिवार की संरचना पहले संयुक्त परिवार की थी .ऐसी हालात में परिवार के सभी सदस्य एक दुसरे के बच्चों का ख्याल अपनी बच्चों के तरह रखते थे .माता पिता अगर बहार भी रहते तो परिवार के अन्य लोग बच्चों के पढाई , उनके साथी -सांगतो और उनकी अन्य समस्याओ पर कड़ी नजर रखते थे .इस कारण जब वे युबा बनते थे तब तक तो वे पारिवारिक मूल्यों , आपसी समझ ,भाईचारा और सहिष्णुता की ज्ञान परिवार से पा लेते थे .उनमे सारी पारिवारिक गुणों की भरमार हो जाती थी .<br />
आजकल हमारे समाज में संयुक्त परिवार का टूटना एक जबरदस्त कारण मैं मानता हूँ .<br />
कारण न० २ --एकल पारिवारिक पद्धति का विकास .एकल परिवार में पति पत्नी और बच्चे .उनकी सोच समझ अपने तक ही सीमित रहती है .उनमे पारिवारिक मूल्यों जिनके रहने से उन्ही जीवन के सफर को तय करना है की लम्बी सफर के लिए आबस्यक शिक्षा नहीं मिल पाई.उनमे अपने तक सिमित रहने और अपनी भलाई , उन्नति तक की ही सोच का विकास हुआ .जो युबाओ के भटकाव का कारण बना .इन्ही पारिवारिक मूल्यों और स्थापित मान्यताओ के कारण यह कहा गया है की '' परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला है ''.<br />
कारण न० ३ --- माता पिता का कामकाजी होना .आज के समाज में हर व्यक्ति अधिक से अधिक धनार्जन अपनी वुधि और छमता से करना चाहता है .इसके लिय पति पत्नी दोनों पढ़े लिखे होने के कारण नौकरी करना चाहते है और करते भी है ,जिसके कारण उनके पास समय नहीं होता की वे अपने बच्चो की पढाई पर पूरा ध्यान दे सके .उन्हें तो बस ये फिक्र रहती है की बच्चो की पढाई में किसी सामान की कमी न हो .उन्ही उनकी पढाई पर ध्यान देने का समय नहीं होता है.अपने बच्चो की पढाई के प्रति उदासीनता भी बच्चो को गलत रह ले जाता है लेकिन उसे भी माता पिता नजरंदाज कर देते है .<br />
उस परिवार में तो आर्धिक सम्पन्ता तो अजाती है लेकिन उनके बच्चो में पारिवारिक मान्यताओ ,मूल्यों और शिक्षा का उस स्तर तक विकास नहीं हो पता है .<br />
मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है की सभी कामकाजी माता पिता के बच्चे पर यह फार्मूला लागु होता है .इसमे भी जो माता पिता अपने बच्चो की पढाई और पारिवारिक मूल्यों और संस्कारो की शिक्षा देते है उन मामलो पर यह लागु नहीं होता है .लेकिन सभी कामकाजी माता पिता ऐसा ही करते है यह भी लागु नहीं होता है .<br />
कारण न ० ४ ----पेरेंट्स के द्वारा अपने बच्चों को बिना सोचे समझे महगे से महगे आधुनिक गदट्स को मुहैया करना .चाहे मोबाइल ,लेपटॉप हो या मंहगे बाएक येहाँ तक की फोर व्हीलर तक अपने बच्चों को स्कूल के स्तर की पढाई होते होते सुलभ करना अब एक सामान्य सी हो गयी है .इसके साथ साथ अब बच्चों को एक मुश्त मोटी राशी प्रति माह पॉकेट मनी दी जाती है जिससे उनमे बिना सोचे समझे खर्च करने की प्रविर्ती का बिकाश होता है .उन्हें यह समझ नहीं आता की पैसा कितना कठिन से कमाया जाता है.<br />
माता पिता द्वारा बच्चों को कभी नहीं समझाया जाता है की पैसे कमाने में क्या तकलीफ होती है .<br />
इस कारण मेरी नजर में बच्चों को बहकाने में उनके माता पिता का सबसे ज्यादा हाथ होता है. वे बिना सोचे समझे पैसा देते है और यह नहीं देखते है की उन पैसे का उनके बच्चें सही उपयोग कर रहे है या नहीं.<br />
अगर बच्चों की चाल ढाल खारब हो जाता है और अगर कोई सम्बन्धी या आस परोस का ब्यक्ति उन्ही उनके बच्चों की शिकायत करते है तो उन बच्चो के माता पिता उसे उसी आदमी को भला बुरा कहते है .अगर उन माता पिता इस शिकायत को ध्यान दे कर अपने बच्चों पर नजर रख सुधार की कोशिश करते तो उनके बच्चे नहीं बीगड़ पते .<br />
इसका एक बहुत बड़ा कारण है की इस भ्रष्टाचार के युग में अगर गौर करेगे तो साफ साफ पता चलेगा की एन बिग्रैल बच्चों में अधिकतर उनके बच्चे है जिन्होंने गलत तरीके से धन कमाया है .उन्हें गलत तरीके से धन कमाने से फुर्सत ही नहीं है की यह देखे की उनके बच्चे क्या करते है .उनकी पढाई कैसी चल रही है .उनकी संगती कैसे लडको के साथ है .उन्हें अच्छा और ख़राब की शिक्षा दे सके.<br />
इस कारण मैं उनके माता पिता का ज्यादा दोष मानता हूँ .<br />
कारण न ० ५ ---- इन्टरनेट का दुष्परिणाम .इन्टरनेट आज के समय का एक आवश्यक एवं अहम् हिस्सा पढाई का हो गया है . इन्टरनेट पर पढाई और ज्ञान की भरमार के साथ साथ आपत्ति जनक सामग्रियो की भी भरमार है .आज के माता पिता अपने बच्चों को कोम्पुटर और इन्टरनेट की सुबिधा को मुहैया इस कारण से कराते है की बच्चों की पढाई में काफी सहयोग मिलेगा. लेकिन ऐसा भी देखने को मिला है की बच्चों के द्वारा इसका दुरूपयोग किया जा रहा है.यह अलग बात है की परेंट्स को इन मामलो पर फी ध्यान देना चाहिए .लेकिन इससे अधिक आवशक यह है की बच्चें इन्टरनेट पर अनावश्यक आपत्तिजनक सामाग्रियो से अपने को दूर रखे .<br />
कारण न० ६ ---- प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया .आजकल टेलीविजन पर ऐसी ऐसी प्रतिविम्बो ,ताशविरो, बिग्यापनो को दिखाया या छपी जाती है की इसका भी काफी असर युबा मानसिक पर पड़ती है जो इनको भटकाओ में काफी सहायक होता है .<br />
मैंने अपने इस लेक के माध्यम से जहाँतक मैंने देखा समझा और महसूस किया की हमारे युवा जो आज गलत राह पर जा रहे है उनके पीछे क्या कारण है ,तो मैंने जिन कारणों को पाया उसी की वर्णन किया है .अगर कोइ सुझाव या टिप्पणी पाठकों की हो तो वह स्वागत योग होगा . </div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-30536507417666666052012-04-22T01:59:00.000-07:002012-04-22T01:59:57.769-07:00अंध विश्वास से बचे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मै एक साधारण परिवार से आता हूँ .मेरा परिवार मेरे गांव का साधारण ही सही लेकिन पढ़ा लिखा परिवार माना जाता है . मेरी पढाई लिखाई पास के ही गांव के स्कूल में हुई .उस समय के स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा संचालित होती थी .उस संचालन समिति के सदस्य मेरे पिता जी हुआ करते थे .इस कारण स्कूल में मेरी पढाई पर अद्यापक काफी सहायता भी किया करते थे .मेरे पिताजी आशपाश के इलाके में काफी सम्मानित व्यक्ति थे .इसका एक कारण यह भी था की वे उस इलाके के पोस्ट ऑफिस के हेड पोस्टमास्टर थे जिनके छेत्र में अभी के करीब करीब आठ दस गांव आया करती थी .<br />
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पुरानी शिक्षा पद्यति में वर्ग सात तक सारी विषयों को एक साथ पढाया जाता था . जैसे ही विद्यार्थी आठवी कच्छा में दाखिला लेता था उसे कला , विज्ञानं या वाणिज्य विषयों में से किसी एक विषय को चुनना रहता था .इसी नियम के तहत मै भी कच्छा आठ में पहले तो विज्ञानं विषय का ही चुनाव किया था लेकिन कच्छा दस में आने के बाद मैंने विज्ञानं विषय से हट कर कला विषय का चुनाव किया . अक्सरहा वर्ग दस में इस प्रकार के विषय वदलने की इजाजत नहीं होती थी लेकिन चुकी मेरे पिताजी इस स्कूल के मैनेजिंग कमिटी के सदस्य थे इस कारण मुझे इसकी अनुमति मिल गई .<br />
वर्ग दस उस समय मेट्रिक कहलाता था ,और उसकी परीक्षा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति लिया करती थी ,मैंने भी परीक्षा में सामिल होगया .परीक्षा की परिणाम समाचार पत्रों में छपा करती थी . उस समय की बिहार में आर्यावर्त ,प्रदीप हिंदी की और दी इंडियन नेसन एवम दी सर्च लाइट अंग्रेजी में प्रमुख रूप से निकला करती थी .यह साल १९६६ की बात है .इसी साल के जून माह में मैट्रिक परीक्षा की रिजल्ट आनी थी .तारीख तो ठीक ठीक याद नहीं है .<br />
उस साल के एक साल पूर्ब मेरे बड़े भाई की शादी तिन चार किलो मीटर दूर शहर के सटे एक ग्राम में हुआ था .उह ग्राम अब मेरे शहर के एक वार्ड में तब्दील हो गया है . यह अलग बात है की अब मेरा ग्राम भी उस शहर का वार्ड संख्या १ और २ बन गया है .मेरे बड़े भाई के बड़े साडू पटना सचिवालय के वित्त विभाग में काम करते थे और पटना में ही रहते थे ,वे मेरे ग्राम बड़े भाई और भाभी से मिलने आये थे और संजोग की बात थी की उसी दिन समाचार पत्रों में मेट्रिक की रिजल्ट भी निकने बाली थी और मुझे भी पहले से तय समय के अनुकूल सबेरे पास ले रेलवे स्टेशन बेगुसराई पेपर लूटने जाना था . लेकिन यह एक संयोग था की जब मै निकलने बाला था तभी मेरे बड़े भाई ने मुझे बुलाया और कहा की तुम रिजल्ट देखने जाने के पूर्ब बाजार जाकर दो किलो मिट ले आओ .अब मेरे लिए अजब परिस्थिति हो गई ,क्योकि मै उन्हें मना भी नहीं कर सकता क्योकि उन्होंने मुझे यह आदेश अपने साडू के सामने दिया था .जब की वे भी जानते थे की आज मेरी रिजल्ट आने बाली है .लिकिन मैंने भी अपने बड़े भाई की बात को माननातय किया और बाज़ार जा कर उस कार्य को कर डाली .इसका एक कारण था की मैं अंधविश्वास को नहीं मानता .ऐसी मान्यता चली आ रही है की जब आप कोई शुभ कार्य करने चलते है तो इन बातों के साथ साथ कुछ अन्य चीजों का नाम लेना शुभ नहीं माना जाता है .चुकी मैं इन मान्यताओ को नहीं मानता अतः मैं रिजल्ट की पेपर लूटने चल पड़ा .उस समय मेरे मन में यह बिचार आया की पेपर में जो रिजल्ट होगा वह तो आहिगाया होगा तो फिर अब सोचना क्या .जो होगा देखा जायेगा अब आप कहेगे की पेपर लूटने क्यों .तो सुनिए ,उस समय पेपर जब रेलवे ट्रेन से स्टेशन पर आती थी तो सभी लडको और उनके अभिभावक उस पेपर को लुट लेते थे और उस लुट में उस पेपर के क्या दुर्दशा होती होगी आप सोच सकते है .पेपर के एक पन्ना कई भाग हो कर कई आदमियो के हाथ चली जाती थी .<br />
इस बात से हम चार साथी अबगत थे फलतः हम सभी साथी सजग थे .जैसे ही स्टेशन पर ट्रेन रुकी और पेपर प्लेटफोर्म पर गिरा हम लोग उस पर टूट पड़े और हमलोग की खुश किश्मत थी की हमारे एक साथी के हाथ में एक प्रदीप पेपर आया और हमलोग बगल के एक गाछी में भागे .हमलोग अपने स्कूल के नाम को खोजने लगे .मेरे कहने पर मेरा एक साथी निचे से रिजल्ट देखने लगा . उस समय मुझे काफी दुःख हुआ जो मेरे तीनों साथियो से मुझे ज्यादा लगा . उस का कारण था की उस रिजल्ट में केवल मै ही पास हुआ था और मेरे तीनों साथी नहीं .आप को आश्चर्य होगा की मेरे उन तीनों साथी ने काफी पूजा कर माथे पर तिलक कर अपना रिजल्ट देखने मेरे साथ चला था .मैंने उसे चलने के पूर्ब मिट लाने के बात नहीं कही थी .<br />
उस दिन से मैंने मानलिया की आप अगर मिहनत करेगे तो आप को सफलता अवश्य मेलेगी .भगवान भी उन्ही की मदद करता है जो आपनी मदद खुद करता .जो मिहनत करेगा उसे सफलता जरुर मिलेगी . गीता में भी कहा गया है की आप अपना कर्म करे फल की चिंता नहीं करे .कर्म के अनुसार मनुष को फल अवश्य मिलेगी .<br />
मैं इसी बात को मानते हुये सरकारी सेबा में आया और पटना सचिवालय के कई बिभागो में राजपत्रित पद पर कार्य करते हुये सेबा से निबृत होगया .<br />
मैंने अपने ग्राम या शहर का नाम नहीं बताया .तो चलिए मै बताता हूँ की मै बिहार राज्य के बेगुसराई जिला के संघौल ग्राम जो अब बेगुसराई जिला नगर निगम का बर्ड संख्या -१ और २ है, का स्थाई निवासी हूँ .</div>
</div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-13713097753547607142012-02-13T06:40:00.000-08:002012-02-13T06:40:33.842-08:00तुम किधर जा रहे हो ---<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> हमलोग जिस सामाजिक परिवेश में रहते है ,उसमे एक कहाबत काफी प्रचलित है के '' पढ़ें गो लिखेगो तो हो गे नवाब ''. अर्थात अगर तुम पढ़तें हो तो तुम्हे भविष्य में जीवन के सारी खुशिया प्राप्त होगी . बचपन में इस कहाबत को कई बार अपने बड़ों से सुन चूका हू . उस एक ऐसा कहाबत है जो हर समय में सार्थक साबित होता है .<br />
कोई बच्चा जब पढता है तो उसके माता पिता एवं परिवार के अन्य बड़े सदस्यों की यह ख्याहिश रहती है के आगे चल के वह बच्चा काफी उंच्या पादो पर असिन हो और अपने काबिलियत /सूझ बुझ से न केबल अपने परिवार / समाज का बल्कि अपने देश की भलाई करे .उनके इस कारनामे से समाज /देश की काफी उन्नति हो . अगर किसी का बच्चा /बच्ची कोई ऐसा काम करता है तो ,उससे न केबल उस माता पिता या परिवार का नाम रोशन होता है बल्कि वह अपने इस प्रकार के कारनामे से अपने पुर्बज्जो की भी नमो को आबाद करता है जिसकी गूंज सदियो तक गूंजता रहता है .<br />
परन्तु काश मेरे देश के चंद प्रमुख पढ़े लिखे लोग अगर इस बात को ध्यान में रखते तो इससे न केबल उनका बल्कि इससे समाज /देश का काफी भला होता .<br />
इन दिनों हमारे देश के अंदर क्या प्रान्त क्या देश के पैमाने पर ऐसी ऐसी घोटालों/भ्रष्टाचार की जाल बुनी पड़ी है जिससे ऐसा लगता है की हमारे देश में इन घोटालों की एक ऐसी हबा चल गई है की हर आदमी अपनी पद/हैसियत के आधार पर घोटाला /भर्ष्टाचार करने लगा तथा उस लिस्ट में अपना नाम सामिल करने को तत्पर है .<br />
आए दिनों समाचार पत्रों में ऐसे पुरानो एवम नए भ्रष्टाचार के समाचारों से समाचार पत्र /दूरदर्शन के समाचार भरे पड़े रहते है .इस कारण अब तो सामान्य जनता को या सामान्य सम्बेदनशील नागरिक को समाचार पत्रों के पढ़ने या दूरदर्शन /रेडियो पर समाचार पढ़ने/देखने या सुनने की आदत काफी कम होती जा रही है .<br />
समाचार पत्रों /दूरदर्शन पर या रेडियो पर समाचारों को पढ़ने ,देखने या सुनने में एक बात की आशंका हमेशा बनी रहती है की अब किस प्रकार की घोटालों/भ्रष्टाचारो को जानकारी मिलनेवालीहै .आप जितने भी प्रकार की घोटालों चाहे उसका प्रकार जो भी हो ,को ध्यान से देखेगे तो एक मामले में आपको समानता मिलेगी ,चाहे वह घोटाला चारा का हो , आदर्श सोसाइटी घोटाला , कोमंवेल्थ घोटाला , अलकतरा घोटाला , खनन घोटाला , बर्दी घोटाला , तबुज़ घोटाला , या अन्य कोई भी घोटाला हो ,आपको स्मरण हो तो , एक बात की निश्चिन्त रूप से समानता देखने को मिलेगी को सभी घोटालों /भर्ष्टाचार काफी पढ़े लिखे और देश /समाज के काफी उच्च पदों पर आसीन ब्यक्ति लिप्त है .इन में से कोई ऐसा घोलालेबाज या भ्रष्टाचारी नहीं है जो गांव , देहात का गरीब ,अनपढ़ और मुर्ख ब्यक्ति हो .इन घोटालों बाजो को देख कर तो ऐसा अब स्पस्ट होने लगा है की यद्यपि ऐसा उधाहरण कम है , की जो ब्यक्ति जितना ऊंच्चा पद पर है ,जितना पढ़ा लिखा है ,वह ब्यक्ति उतने बढे घोटालेबाज,भष्टाचारी हो सकता है . समाज /देश में जब तक उक्त घोटालेबाज को कोई ऐसी सजा भी नहीं मिलती क्योकि जितना बढ़ा घोटाला उतनी बढ़ी पहुच भी उनकी बन जाती है ,जिससे समाज को एक अच्छा सन्देश जा सके और लोग इससे दुरी बनाए .<br />
यद्यपि काफी उच्च्य स्तर के पढ़े लिखे उचे पदों पर आसीन घोटालेबाजो /भष्टाचारी की संख्या कम है ,इने गिने है ,लेकिन उनसे तो हमारा समाज /देश कलंकित होता है . स्मरण हो की जब हम खाना बनाते है तो वर्तन में रखे सरे चावलों को देख कर नहीं कहते है की चावल पक्का है या नहीं .इसके लिए तो एक -दो चावल के दानो को ही देख कर कहा जाता है की वर्तन में पक्क रही चावल पक्के है या नहीं .ऐसे पढ़े लिखे उच्च स्तर पदों पर आसीन घोटालेबाजो से समाज /देश को क्या सीख मिलेगी . इनसे तो हमारे देश /समाज का वह नागरिक जो भोला ,सदा जीवन जीने बाला और आपनी आमदनी के अधीन ही अपनी जरूरतों को रख कर जीने का आदि है और उसी में अपनी जीवन की सारी खुशी खोज पता है ,अच्छा है .कम से कम जनता की गाढ़ी कमाई का घोटाला तो नहीं करता है . </div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-56825954052124434812012-01-01T02:48:00.000-08:002012-01-04T00:33:02.134-08:00संयुक्त परिवार --अपेक्षाओं / चाहतो से दूर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> पूर्व में जब संयुक्त परिवार में लोग रहते थे तो उस प्रकार की पारिवारिक व्यवस्थाओ पर इतना गाढा विश्वास था की इस प्रकार की पारिवारिक व्यावस्था के विषय में लोग अन्यथा कभी कोई भावना अपने दिल दिमाग पर लेने की सोचते भी नहीं थे .संयुक्त परिवार की परिकल्पना की निर्भरता मुख्य रूप से इस बात पर थी . इसी सोच पर निर्भर करती है की संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के बीच एक ऐसा तालमेल हो जिसके कारण वे किसी एक सदस्य की निजी समस्या या परेशानी तथा उनकी खुशी पुरे परिवार की समस्या या खुशी बन जाय.इस प्रकार की पारिवारिक व्यवस्था में हर सदस्य अपने अपने सौंपे गए कार्यों को किया करते है . पुरुष एवंम महिला दोनों सदस्यों के कार्यों का निर्धारण उनकी क्षमता के आधार पर परिवार के प्रमुख्य निर्धारित किया करते थे .<br />
संयुक्त परिवार का अस्तित्व अभी भी भारतीय सामाजिक संरचना में देखने को मिलता है .इस प्रकार की परिवार में परिवार के सभी सदस्यों का समन्यव एवं समग्र विकास देखने को मिलता है . ये अलग बात है की जो लोग संयुक्त परिवार की संरचना एवं परिकल्पना में विश्वास नहीं करते या जिनकी इस पारिवारिक संरचना को देखने का अवसर नहीं मिला वे लोग उसका रसास्वादन नहीं किये .वैसे लोग संयुक्त परिवार के स्थान पर एकल पारिवारिक संरचना या व्ववस्था को ही अधिक सम्यक एवं व्यक्ति के विकास का अच्छा विकल्प मानते है .हलाकि उनकी सोचने का जो भी अंदाज़ हो या हो भी तर्क हो उससे भी इंकार नहीं किया जा सकता .लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है की संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों का विकास नहीं होता है . संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों की विकास की गति कुंठित या मलिन नहीं होती है . मेरा मानना है की इससे उनकी विकास की गति या उनकी चमक ओर तीव्र होती है . यह भी सर्व सत्य है की इस प्रकार के परिवार की विकास में कुछ सामान्य सिद्धांत या सामान्य ,मान्यता है जिनसे परिवार के सभी सदस्यों को दूर रहने होते है , इस परिवार के सदस्यों को एक दो शव्दों के धार से जितनी दूर रहेगे ,उनका संयुक्त परिवार उतना ही प्रबल और सफल होगा . ऐसा मेरा मानना है . हो सकता है अन्य लोगो की भावना या सोच इससे नहीं मिलती हो ,लेकिन अगर वे लोग जो इस सोच से अलग सोच या विचार रखते है अगर इस शव्द की गहराई एवं मारक क्षमता पर नजर डालेगे तो उन्हें उसकी मारक क्षमता का असर अवश्य सुनाई पड़ेगी.अब आप कह सकते है की वह कौन सी भावना है जिससे संयुक्त परिवार के सदस्यों को थोड़ी दुरी बनाये रखनी चाहिए . इस भावना से जितनी दुरी होगी वह संयुक्त परिवार उतना ही सफल और सवल होगा .वह शव्द या भावना है 'अपेक्षा या चाहत '.(expectations & desire ) जो हमेशा दूसरों से की जाने वाली होती है .<br />
मै यह नहीं कहता की संयुक्त परिवार के सदस्यों के बीच कोई अन्य सदस्यों से कोई अपेक्षा expectations या चाहत desire की भावना नहीं रखनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए . मै ऐसा समझता हू की संयुक्त परिवार के सदस्यों के बीच अगर व्यक्तिगत अपेक्षा या चाहत की भावना प्रवाल होगी तो एसे परिवार की निर्भरता की सीमा घटती जायेगी . यह सही है की अपेक्षा या चाहत के कारण ही मानव ने कई बड़े बड़े अविष्कार किये है .कई उन्नत ,उपयोगी वस्तु ,साधन, समाज को दिया है . इसप्रकार की अपेक्षा जन विकास के लिए आवश्यक थी जो किया . यहाँ भी उन अविष्कारकर्ता या वैज्ञानिक की भावना अपने स्व विकास तक सिमित या सोच नहीं था या रहता है वल्कि वे तो समग्र समाज देश और विश्व की कल्याण या उनकी सुख सुविधा को ध्यान में रख कर उस प्रकार की आविष्कार की अपेक्षा रखते है या करते है .<br />
अपेक्षा या किसी से चाहत भावना का व्यक्ति के जीवन में एक बड़ा ही अहम महत्व होता है . लेकिन यह भावना तब काफी दुखदाई हो जाती है जब कोई आदमी या संयुक्त परिवार का सदस्य दूसरों से अपने लिए यह अपेक्षा रखता है की मै कुछ दूसरों के लिए करू या न करू परिवार के दूसरे सदस्य मेरे को करे .ऐसा करने के पीछे यह भावना रहती है की या तो मै परिवार का बड़ा सदस्य हू या किसी कारन के महत्व पूर्ण सदस्य कमाई या पद के कारन हो .जब वह सदस्य अपने को संयुक्त परिवार के अन्य सदस्व से उपर मानने लगा हो .उनकी भावना हो जाती है की परिवार के अन्य सदस्य उनकी सारी बातों को माने उनकी सुख सुविधा का ख्याल रखे भले ही वे सज्जन अन्य सदस्यों की इन भावनाओ का ख्याल नहीं रखते हो तभी उनकी यह अपेक्छा या चाहत जव पूरी नहीं होती है ,कष्ट का कारण बन जाती है जो संयुत्क्त परिवार की डोड मै एक गाठ का कारण वन जाता है जो वाद में एक बड़ा नासूर वन जाता है और पारिवारिक संरचना को धीरेधीरे समाप्त की और ले जाता है ..<br />
यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा की अपेक्षा हमेशा दूसरों से किया जाता है ,जबकि स्वपेक्षा आपने से की जाती है .हमलोग दूसरों से अपेक्षा तो रखते है लेकिन अपने अंदर नहीं झाकते है की मैंने दूसरों के लिए क्या किया .संयुक्त परिवार में भी जब कोई सदस्य इसी भावना से पीड़ित हो जाता है तो संयुक्त परिवार की डोर में गांठ पड़ जाती है.इस परिवार के किसी सदस्य ने अपने परिवार के अन्य सदस्य के विषय में कोई अपेक्षा रखना चाहे तो उसके साथ अपने को दूसरों के प्रति व्यवहार के विषय में या कुछ करने के विषय में भी स्वाथ्य विचार रखने चाहिए . फिर जव उसे उस व्यक्ति से वैसी अपेक्षा जैसा व्यव्हार नहीं मिलता है तब अपेक्छा रखने बलों के लिए दुःख का कारन तो बनता ही है .उसके साथ साथ रिश्तों में भी खटास की बू आने लगती है जो बाद में चल के संयुक्त परिवार के सीधी चाल को असर ड़ाल देती है<br />
संयुक्त पारिवार का एक सदस्य अगर दूसरे सदस्य से कोई अपेक्षा रखते है तब वैसी स्थिति में ऐसा अपेक्षा दूसरों से रखने बाले परिवार के सदस्यों को यह भी सोचना और समझना चाहिए की परिवार के अन्य सदस्यों की भी कुछ अपेक्षाएं उनसे होगी . क्या उन्होंने उन सदस्यों के अपेक्षाओं को पूरा किया .अगर नहीं किया तो उन सदस्यों की भी भावना क्या उनके प्रति होगी .<br />
यह उदाहरण का मामला नहीं है .मेरा मानना है की किसी भी व्यक्ति की दूसरों से अपेक्षा रखना ही कष्ट का कारन होता है . हम अपने में नहीं देखते और अपेक्षा करते है की दूसरा कोई हमसे अच्छा व्यव्हार करे , मेरी सभी जरूरतों को पूरा करे . यह अपेक्षा रखते है ,लेकिन वे यह भूल जाते है की मै अपने परिवार की अपेक्षाओं पर कितना खड़ा उतरा . मेरे यह मानना है की आप दूसरों से अपेक्षा करने या रखने के बजाय आप स्वं आपने अंदर झांके और देखे की आप कितने लोगो की अपेक्षा पर खड़े उतरे है . दूसरे लोगो की आपसे भी काफी अपेक्षा होगी या उनलोगों ने आपसे अपेक्षा की होगी ,तो ऐसी स्थिति में आपको दूसरों से अपेक्षा करने से पहले अपने आप से यह प्रश्न का उत्तर पाए की मै कितना अन्य के अपेक्षाओं पर खड़ा उतरा .<br />
संयुक्त परिवार में जब हम यह सोचते है की मेरे काम सब करे तो मेरे भलाई सोचे तो मुझे भी पहले देखना होगा की मैंने परिवार के अन्य सदस्यों के लिए कितना किया . जब यह भावना आप में होगो तो संयुक्त परिवार का पौधा अपने आप उन भावनाओ से सिचता हुआ और हरा भरा रहेगा जिसके छांव में संयुक्त परिवार के सभी सदस्य सम्मान ,एकता ,एवम सहजता के साथ रह सकेगे .<br />
ये अलग बात है की संयुक्त परिवार में अगर हमारे चाचा ,चाची ,बड़े या छोटे भाई भाभी मामा मामी ,दादा दादी अर्थात सभी सदस्य के बिच अगर एक दूसरों से अपेक्षा पर निर्भरता सामान्य रूप से अधिक अगर नहीं रहती है ,तब तक संयुक्त परिवार रूपी गाड़ी निर्वाध रूप से चलती रहेगी .संयुक्त परिवार का रूप एवं स्वरुप तथा खूबी ही है की संयुक्त रहे ,संयुक्त सोचे ,संयुक्त विकास करे और संयुक्त रूप से सभी सदस्य एक दूसरों की दुःख दर्द एवं सुख का आनंद ले .<br />
इस लेख के बिषय में आप की कोई भी टिप्पणी ,विचार मेरे लिए पथप्रदर्शन का कम करेगी .</div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-9602936816164884252011-12-15T00:13:00.000-08:002011-12-23T23:31:54.430-08:00ऑटो के पीछे एक ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">यो तो मैं लगभग वर्ष १९६६ से पटना में आता जाता रहा हूँ .इस का कारन था की मेरे फूफा बिहार पब्लिक सर्विस कमिसन में राजपत्रित पदाधिकारी थे .उस समय वे पटना के पत्थल मस्जिद मोहल्ला में रहते थे .बाद में उन्होंने अलकापुरी मोहल्ला में आपना माकान बनाया .लेकिन मैं पटना में लगातार रूप से साल १९७६ के अप्रैल माह से रह रहा हूँ .इसका कारन था की मैं पटना सचिवालय मैं नियुक्त हो कर कार्य करने लगा .उस समय से मैं पटना के सड़क पर चलता आ रहा हूँ .<br />
इधर एक दिन का वाकया है की मैं अपने छोटी सी सामान्य निहायत ही मामूली गाड़ी मारुती अल्टो से अपने ऑफिस लोक स्वाथ्य अभियांतन विभाग, जो पटना के वव्यस्तम बेली रोड पर स्थित है जा रहा था .मैं राजवंशी नगर की और से आ रहा था.रोड पर काफी भीड़ थी .इस कारन सभी गाडियां काफी धीरे धीरे चल रही थी . मैं भी इसी के साथ धीरे धीरे चल रहा था. थोड़ी दूर जाने के बाद बायीं ओर मुझे आपने ऑफिस जाने के लिए मुख्य द्वार से मुडना था .लेकिन काफी भीड़ रहने के कारण मै गेट पर ही रुक गया. मेरे ठीक आगे एक ऑटो रुका हुआ था.एकाएक मेरी नजर उस ओटो के पीछे पड़ी.कुछ लिखा था उस पर. जब मैं उस पंक्ति को पढ़ा तो थोड़ी देर के लिए सोचने लगा .तब तक आगे का रास्ता साफ हो गया था और मेरे पीछे की गाडियां काफी जोर से होर्न बजा रहे थे.तब मुझे एकाएक लगा की मुझे आगे बढ़ना हें .<br />
<br />
आप सोच रहे होंगे की ऐसी क्या बात थी .तो मैं उस ऑटो के पीछे लिखा एक स्लोगन को लिख रहा हूँ .वह था ...<br />
'आप दूसरों की इज्जत करे तो , दूसरे आप को अपने आप इज्जत देगे .<br />
मैं इस स्लोगन से काफी इम्प्रेस हुआ . यह स्लोगन काफी व्यावहारिक सटीक एवं समसामयिक था .<br />
इस स्लोगन का या यों कहे की वह भी एक संयोग था ,उदाहरण भी उसी दिन मुझे देखने को मिला. उसी दिन मैं आपने ऑफिस से घर जा रहा था . मुझे कुछ फल खरीदने थे. मैं पटना के नई सचिवालय अर्थात विकास भवन के सामने ठेले पर फल बेचने वाले के पास गया.उस जगह पर मैं ने उस फल वेचने वाले से कहा भाई फल कैसे किलो है .इसने सेव का दम मुझे ८०/- अस्सी रूपये किलो कहा. मैंने कहा भाई मै फल चुन कर लुगा. अगर आप देगे तो ठीक है ऐसे आप की मर्जी. उसने कहा की सभी फल ठीक है .फिर मैंने उसको कहा देखो भाई अगर फल खराब होगा तो लेने से क्या फायदा. आपका तो सामान बिक गया .उस फल बेचने वाले ने कहा की सर आप रोज फल लेते है.आप सायद नहीं जानते .फिर मैं फल थोडा चुन चुन कर लेने लगा .उसने भी मेरी सहायता की .और मैंने फल खरीद लिया.<br />
मैं पैसा दे के मुड़ा ही था की एक और सज्जन उस फल बेचने बाले के पास आये और उसको कहा की फल क्यां दाम है .पूर्व की भाति उसने कहा की ८०/-अस्सी रूपये किलो. इस पर वे सज्जन उसको कहे की दूसरे ठेला पर ७०/-सत्तर रुपए किलो देता है ओर तुम ८०/-अस्सी रूपये .उसने कहा बाबु वह सेब काफी दाग वाला है ओर यह साफ.उसका सेब काफी छोटा भी है.उस सज्जन ने उसे कहा की हम तो तुम से ७०/- सत्तर रूपये ही लेगे ओर तुम क्या तुम्हारा बाप देगा. इस पर सेब वाले ने कहा की आप मेरे बाप तक नहीं जाये .मुहं सभाल कर बात करे. इस पर बात इतनी बढ़ गयी की कई लोगो को बिच बचाव में आना पड़ा .उस स्थान पर जमा और ठेले वाले ने तब तक उस सज्जन को दो तीन हाथ जड़ दिए.<br />
मैं तो उस फल बेचने वाले से फल खरीद लिया लेकिन सोचने लगा की क्या संयोग है की मैं आज ही एक स्लोगन जो एक ऑटो के पीछे लिखा था पढ़ा ओर तुरंत ही इसको चरितार्थ होते हुआ भी देख लिया.<br />
क्या संयोग है.ठीक ही लिखा था की आदमी आपनी इज्जत स्वयं पाता है.अगर आप दूसरों की इज्जत करेगे तो आप आपने आप इज्जत दूसरों से पायेगे .</div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-26624447010816808902011-11-26T20:44:00.000-08:002011-11-26T20:44:27.066-08:00कुछ पल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">कुछ पल पहले की बात है ,<br />
<br />
मैं यु ही शांत बैठा था.<br />
<br />
तभी मैं खो गया अतीत मैं ,<br />
<br />
मैं देख रहा था एक फोटो ,<br />
<br />
जो था जुडा मेरे अतीत से .<br />
<br />
मैं देख रहा था फोटो ,<br />
<br />
वह फोटा था मेरे सुपुत्र का ,<br />
<br />
देखते देखते उस फोटो को ,<br />
<br />
मैं खो गया अपने अतीत मैं .<br />
<br />
मैं कभी उस फोटो को ,<br />
<br />
तो कभी बर्तमान को सोचता .<br />
<br />
वह भी क्या पल था ,<br />
<br />
मेरे जीवन के .<br />
<br />
यह मैं सोचते सोचते ,<br />
<br />
आंखे मेरे लग गई रत में ,<br />
<br />
और मैं खो गया नींद के आगोश में .<br />
<br />
-------------------<br />
<br />
</div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4825277254591273528.post-72968515381078299762011-11-23T02:34:00.000-08:002011-12-03T07:41:51.439-08:00संयुक्त परिवार --तनाव दूर करने का एक सफल साधन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">वर्तमान समय में प्राचीन संरचना से निर्मित परिवारिक परिवेश की कल्पना थोड़ी बहुत अवश्य धुधिली होती जा रही है .इसके स्थान पर खास कर बड़े शहरो में एकल परिवार की संरचना प्रबल होती गयी . इस एकल परिवार की संरचना का काफी असर शहरी मध्य वर्ग परिवार पर अधिक देखा जा रहा है .<br />
एकल परिवार की प्रवृति मध्य वर्गी समाज में प्रखर होने के कई कारण भले हो सकते है लेकिन मुख्य कारण तो स्व उत्थान या स्व विकाश की भावना या यो कहे की उनसे अच्छी मेरी है की भावना की प्रवलता है .<br />
पुराने समय में समाज में संयुक्त परिवार का बोलबाला था . सभी परिवार के सदस्य अपनी निजी भाबना या स्व की भावना से ऊपर उठकर परिवार की भावना को सामने रख कर परिवारिक हित की ही बात सोचते थे और पारिवारिक हित की ही बात करते थे . इसका असर होता था की इस संयुक्त परिवार में जब बच्चा जनम लेता था या यो कहे जब बच्चा अपनी आंखे इस संसार में खोलता था तो उसे संयुक्त परिवार का परिवेश ही दिखाई देता था .<br />
इसी संयुक्त परिवार में वह बच्चा खेलता पढता बड़ा होता था .अपने माता पिता या दादा दादी ,चाचा चाची या कहे की उस परिवार के सभी बड़े बुजुर्ग की देख रेख में पलता था .उनकी संयुक्त परिवार की भावना का इसके मन मानस पर गहरा असर पड़ता था .बच्चा बड़ा होते होते परिवार तथा समाज की प्रत्येक बातों को काफी गहरी से जनता और समझता था . उसका असर यह होता था की उस व्यक्ति में भी स्व भाबना के स्थान् पर पारिवारिक भावना का स्थान बलबती होती रहती थी जो एक उनकी जीवनधारा बन जाती थी .लड़का अपने परिवार में यह देखता था की उशके बड़े बुजुर्ग किस प्रकार किसी समस्या का समाधान पारिवारिक हितों को ध्यान में रख कर करते तथा स्व हित के स्थान पर परिवारिक हितों का ही केवल महत्व होता था .<br />
उस समय की प्राचीन परिवार में आज कल की तरह माहिला बाहर जा कर काम नही किया करती थी.उस समय के सामाजिक पारिवारिक संरचना में परिवार के पुरुष अपनी पढाई पूरी करने के बाद या तो खेती का काम करते या अपना कोइ व्यवसाय किया करते थे . यह भी कह सकते है की परिवार का पुरुष सदस्य घर से बहार जा के अपना कार्य या व्यवसाय को किया करता था तो परिवार की महिला सदस्य गृह कार्यों को संपादन करती थी .उनकी गृह कार्यों के संपादन में घर परिवार की अनुभवी स्त्रियां मदद किया करती थी .<br />
संयुक्त परिवार में लड़कियां परिवार की अन्य बड़ी महिलाओ एवं बुजुर्ग महिलाओ ले संयुकत परिवार में किस प्रकार से रहनी चाहिए ,अपनों से बडो पुरुषों तथा महिलाओ से कब किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए का पूर्ण प्रशिक्षण लिया करती थी . इसकी अलावे परिवार में लड़कियां का उठाना बैठना ,बोलना चलना ,पहनावा आदि की शिक्षा तथा प्रशिक्षण दिया जाता था तथा इसका खास महत्त्व दिया जाता था. परिवार के लड़के एवं लड़कियां को पारिवारिक हितों के विषय में प्रारंभिक प्रिशिक्षण इसी संयुक्त परिवार में दिया जाता था . उसी के अधर पर यह कहागया है की परिवार मनुष का प्रारंभिक पाठशाला होता है .इसी संयुक्त परिवार में पुरुष और महिला स्व भावना से उपर उठ कर परिवार भावना को धयान में रख कर कम किया करते थे . परिवार के किसी एक सदस्य की समस्या परिवार की समस्या हो जाती थी. और परिवार के सभी सदस्य मिल बैठ कर उस समस्या का समाधान किया करते थे . चाहे बच्चो की देखभाल की समस्या हो या पढाई लिखाई की या लडको एवं लडकियो की शादी की समस्या हो . परिणाम यह होता था की परिवार के किसी सदस्य को मानशिक या शारीरिक समस्या उपत्पन नहीं होती थी जो तनाव का कारन बने .<br />
संयुक्त परिवार में परिवार का एक बड़े वुजुर्ग होते थे जिन्हें परिवार का मुखिया कहा जाता था .इस पद का हक़दार परिवार के बुजुर्ग पुरुष या महिला कोई होता था . इस बुजुर्ग सदस्य का पहला कर्तव्य होता था की परिवार के सभी सदस्यों को एक जुट रखे और सभी की समस्याओ का समाधान करे . ये मुखिया परिवार के अंदर एवं बाहरी दोनों तरफ से होने वाली समस्याओ का समाधान करते थे . परिवार के अन्य सदस्य इनकी हरेक आदेश का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे .<br />
समय के साथ साथ संयुक्त परिवार में रहने वाले सदस्यों ली निजी भावना एवं छोटी छोटी हितों को महत्त्व देने के परिणाम स्वरुप सदस्यों में स्व भावना का विजारोपन होने लगा . धीरे धीरे समय की थपेरों से संयुक्त परिवार की नीव थोड़ी डगमगाने लगी . परिवार में सदस्यों के अहम एवं मेरी की भावना इतनी बलवती होती गई की इस संयुक्त परिवार की संरचना को हिला दिया . सदस्यों में छोटी छोटी वातो को ले कर आपसी प्रतिस्पर्धा एवं मनोमालिन्य उजागर होने लगी . परिणाम हुआ की संयुक्त परिवार धीरे धीरे बिखरती गई और इसके स्थान पर एकल पारिवारिक संरचना अपना स्थान धीरे धीरे फैलाने लगी .<br />
संयुक्त परिवार का एक महत्वपूर्ण सत्य था की इस परिवार में रहने वाले सदस्यों की निजी जीवन में तनाव का बहुत ही कम स्थान होता था . इन्हे मालूम होता था की उनकी हरेक समस्याओ एवं जरूरतों की फिक्र परिवार के अन्य सदस्य करते है और इनकी समाधान की संभावनाओ को तलाशते थे . संयुक्त परिवार में सदस्यों के बिच सम भावना रहने के कारण स्व भावना का उदय होने की बात तो सोची भी नहीं जाती थी . जब मनुष्य के जीवन ने स्व उत्थान की भावना नहीं आएगी स्वभाभिक है के तनाव कम होगा . मानुष की अपनी ईच्छाओं एवं अभिलाषाओ की लंबी उड़ान ही तनाव के मुख्य कारणों में एक है . संयुक्त परिवार में इन भावनाओ का स्थान नहीं होने से स्वाभाविक रूप से परिवार के सदस्यों को मानशिक तनाव नहीं उपजता है . </div>satishhttp://www.blogger.com/profile/00479532114433862090noreply@blogger.com8