Thursday, 15 December 2011

ऑटो के पीछे एक ....

यो तो मैं लगभग वर्ष १९६६ से पटना में आता जाता रहा हूँ .इस का कारन था की मेरे फूफा बिहार पब्लिक सर्विस कमिसन में राजपत्रित पदाधिकारी थे .उस  समय वे पटना के पत्थल मस्जिद  मोहल्ला में रहते थे .बाद में उन्होंने अलकापुरी मोहल्ला में आपना माकान बनाया .लेकिन मैं पटना में लगातार रूप से साल १९७६ के अप्रैल माह से रह रहा हूँ .इसका कारन था की मैं पटना सचिवालय मैं नियुक्त  हो कर कार्य करने लगा .उस समय से मैं पटना के सड़क  पर चलता आ  रहा हूँ .
इधर एक दिन का वाकया है की मैं अपने छोटी सी सामान्य निहायत ही मामूली गाड़ी मारुती अल्टो से अपने ऑफिस लोक स्वाथ्य अभियांतन विभाग, जो पटना के वव्यस्तम बेली रोड पर स्थित है जा रहा था .मैं राजवंशी नगर की  और से आ रहा था.रोड पर काफी भीड़ थी .इस कारन सभी गाडियां काफी धीरे धीरे चल रही थी . मैं भी इसी के साथ धीरे धीरे चल रहा था. थोड़ी दूर जाने के बाद बायीं ओर मुझे आपने ऑफिस जाने के लिए मुख्य द्वार से मुडना था .लेकिन काफी भीड़  रहने के कारण मै गेट पर ही रुक गया. मेरे ठीक आगे एक ऑटो रुका हुआ था.एकाएक मेरी नजर उस ओटो के पीछे पड़ी.कुछ लिखा था उस पर. जब मैं उस पंक्ति  को पढ़ा तो थोड़ी देर के लिए सोचने लगा .तब तक आगे का रास्ता साफ हो गया था और मेरे पीछे की गाडियां काफी जोर से होर्न बजा रहे थे.तब मुझे एकाएक लगा की मुझे आगे बढ़ना हें .

आप सोच रहे होंगे की ऐसी क्या बात थी .तो मैं उस ऑटो के पीछे लिखा एक स्लोगन को लिख रहा  हूँ .वह था ...
'आप दूसरों की इज्जत करे तो  , दूसरे आप को अपने आप इज्जत देगे .
मैं इस स्लोगन से काफी इम्प्रेस हुआ . यह स्लोगन काफी व्यावहारिक सटीक एवं समसामयिक था .
इस स्लोगन का या यों कहे की वह भी एक संयोग था ,उदाहरण भी उसी दिन मुझे देखने  को  मिला. उसी दिन मैं आपने ऑफिस से घर जा रहा  था . मुझे कुछ फल खरीदने थे. मैं पटना के नई सचिवालय अर्थात विकास भवन के सामने ठेले पर फल बेचने वाले के पास गया.उस जगह पर मैं ने उस फल वेचने वाले से कहा भाई फल कैसे किलो है .इसने सेव का दम मुझे ८०/- अस्सी रूपये किलो कहा. मैंने कहा भाई मै फल चुन कर लुगा. अगर आप  देगे तो ठीक है ऐसे आप की मर्जी. उसने कहा की सभी फल ठीक है .फिर मैंने उसको कहा देखो भाई अगर फल खराब  होगा तो लेने से क्या फायदा. आपका तो सामान बिक गया .उस फल बेचने वाले ने कहा की  सर आप रोज फल  लेते है.आप सायद  नहीं जानते .फिर मैं फल थोडा चुन चुन कर लेने लगा .उसने भी मेरी सहायता की .और मैंने फल खरीद लिया.
मैं पैसा दे के मुड़ा  ही था की एक और सज्जन उस फल बेचने बाले के पास  आये और उसको कहा की फल क्यां दाम है .पूर्व की भाति उसने कहा की ८०/-अस्सी रूपये किलो. इस पर वे सज्जन उसको  कहे की दूसरे ठेला पर ७०/-सत्तर रुपए किलो देता है ओर तुम ८०/-अस्सी रूपये .उसने कहा बाबु वह सेब काफी दाग वाला है ओर यह साफ.उसका सेब काफी छोटा भी है.उस सज्जन ने उसे कहा की हम तो तुम से ७०/- सत्तर रूपये ही लेगे ओर तुम क्या तुम्हारा बाप देगा. इस पर  सेब वाले ने कहा की आप मेरे बाप तक नहीं जाये .मुहं सभाल कर  बात करे. इस पर बात इतनी बढ़ गयी की कई लोगो को बिच बचाव में आना पड़ा .उस स्थान पर जमा और ठेले वाले ने तब तक उस सज्जन को दो तीन हाथ जड़ दिए.
मैं तो उस फल बेचने वाले से फल खरीद लिया लेकिन सोचने लगा की क्या संयोग है की मैं आज ही एक स्लोगन जो एक ऑटो के पीछे लिखा था पढ़ा ओर तुरंत ही इसको चरितार्थ होते हुआ भी देख लिया.
क्या संयोग है.ठीक ही लिखा था  की आदमी आपनी इज्जत स्वयं पाता है.अगर आप दूसरों की इज्जत करेगे तो आप आपने आप इज्जत दूसरों से पायेगे .

Saturday, 26 November 2011

कुछ पल

कुछ पल पहले की बात है ,

         मैं यु ही शांत बैठा था.

तभी मैं खो गया अतीत मैं ,

         मैं देख रहा था एक फोटो ,

जो था जुडा मेरे अतीत से .

           मैं देख रहा था फोटो ,

वह फोटा था मेरे सुपुत्र का ,

           देखते देखते उस फोटो को ,

मैं खो गया अपने अतीत मैं .

             मैं कभी उस फोटो  को ,

तो कभी बर्तमान को सोचता .

                 वह भी क्या पल था ,

मेरे जीवन के .

                   यह मैं सोचते सोचते ,

आंखे मेरे लग गई रत में ,

                और मैं खो गया नींद  के आगोश में .

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Wednesday, 23 November 2011

संयुक्त परिवार --तनाव दूर करने का एक सफल साधन

वर्तमान समय में प्राचीन संरचना से निर्मित परिवारिक परिवेश की कल्पना  थोड़ी  बहुत अवश्य धुधिली होती जा रही है .इसके स्थान  पर खास कर बड़े  शहरो में एकल परिवार की संरचना प्रबल होती गयी . इस एकल परिवार की संरचना का काफी असर शहरी मध्य वर्ग परिवार पर अधिक देखा जा रहा है .
एकल परिवार की प्रवृति  मध्य वर्गी समाज में प्रखर होने के कई कारण भले हो सकते है लेकिन मुख्य कारण तो स्व उत्थान  या स्व विकाश की भावना या यो कहे की उनसे अच्छी मेरी है की भावना की प्रवलता है .
पुराने समय में समाज में संयुक्त परिवार का बोलबाला था . सभी परिवार के सदस्य अपनी निजी भाबना या स्व की भावना से ऊपर उठकर परिवार की  भावना को सामने  रख कर परिवारिक हित की ही बात सोचते थे और पारिवारिक हित की  ही बात करते थे . इसका असर होता था की इस संयुक्त परिवार में जब बच्चा जनम लेता था या यो  कहे जब बच्चा अपनी आंखे इस  संसार में खोलता था तो उसे  संयुक्त परिवार का परिवेश ही दिखाई देता था .
इसी संयुक्त परिवार में वह बच्चा खेलता पढता बड़ा होता था .अपने माता पिता या दादा दादी ,चाचा चाची  या कहे की उस परिवार के सभी बड़े बुजुर्ग की देख रेख में पलता था .उनकी संयुक्त परिवार की भावना का इसके मन मानस पर गहरा असर पड़ता था .बच्चा बड़ा होते होते परिवार तथा समाज की प्रत्येक बातों को काफी गहरी से जनता और समझता था . उसका असर यह होता था की उस व्यक्ति में भी स्व भाबना के स्थान् पर पारिवारिक भावना का स्थान बलबती होती रहती थी जो एक उनकी जीवनधारा बन जाती थी .लड़का अपने परिवार में यह देखता था की उशके बड़े बुजुर्ग किस प्रकार किसी समस्या का समाधान पारिवारिक हितों को ध्यान में रख कर करते तथा स्व हित के स्थान पर परिवारिक हितों का ही केवल महत्व होता  था .
उस समय की प्राचीन परिवार में आज कल की तरह  माहिला बाहर जा कर काम नही किया करती थी.उस समय के सामाजिक पारिवारिक संरचना में परिवार के पुरुष  अपनी पढाई पूरी करने के बाद या तो खेती का काम  करते या अपना कोइ  व्यवसाय किया करते थे . यह भी कह सकते है की परिवार का पुरुष  सदस्य घर से बहार जा के अपना कार्य या व्यवसाय को किया करता था तो परिवार की महिला सदस्य गृह कार्यों को संपादन करती थी .उनकी गृह कार्यों के संपादन में घर परिवार की अनुभवी  स्त्रियां मदद किया करती थी .
संयुक्त  परिवार में लड़कियां परिवार की अन्य बड़ी महिलाओ एवं बुजुर्ग महिलाओ ले संयुकत परिवार में किस प्रकार से रहनी चाहिए ,अपनों से बडो पुरुषों तथा महिलाओ से कब किस प्रकार का व्यवहार  करना चाहिए का पूर्ण प्रशिक्षण लिया करती थी . इसकी अलावे परिवार में लड़कियां का उठाना बैठना ,बोलना चलना ,पहनावा आदि की शिक्षा तथा प्रशिक्षण दिया जाता था  तथा इसका खास महत्त्व दिया जाता था. परिवार के लड़के एवं लड़कियां को पारिवारिक हितों के विषय में प्रारंभिक प्रिशिक्षण इसी संयुक्त परिवार में दिया जाता था . उसी के अधर पर यह कहागया है की परिवार मनुष का प्रारंभिक पाठशाला होता है .इसी संयुक्त परिवार में पुरुष और महिला स्व भावना से उपर उठ कर परिवार भावना को धयान में रख कर कम किया करते थे . परिवार के  किसी एक सदस्य की समस्या परिवार की समस्या हो जाती थी. और परिवार के सभी सदस्य मिल बैठ कर उस समस्या का समाधान किया करते थे . चाहे बच्चो की देखभाल की समस्या हो या पढाई लिखाई की या लडको एवं लडकियो की शादी की समस्या हो . परिणाम यह होता था की परिवार के किसी सदस्य को मानशिक या शारीरिक समस्या उपत्पन नहीं होती थी जो तनाव का कारन बने .
संयुक्त परिवार में परिवार का  एक बड़े वुजुर्ग होते थे जिन्हें परिवार का मुखिया कहा जाता था .इस पद का हक़दार परिवार के बुजुर्ग पुरुष या महिला कोई होता था . इस बुजुर्ग सदस्य का पहला कर्तव्य होता   था की परिवार के सभी सदस्यों को एक जुट रखे और सभी की समस्याओ का समाधान करे . ये मुखिया परिवार  के अंदर एवं बाहरी दोनों तरफ से होने वाली समस्याओ का समाधान करते थे . परिवार के अन्य सदस्य इनकी हरेक आदेश का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे .
समय  के साथ साथ संयुक्त परिवार  में रहने वाले सदस्यों ली निजी भावना एवं छोटी छोटी हितों को  महत्त्व देने के  परिणाम स्वरुप सदस्यों में स्व भावना का विजारोपन होने लगा . धीरे धीरे समय की थपेरों से संयुक्त परिवार की नीव थोड़ी डगमगाने लगी . परिवार में सदस्यों के अहम एवं मेरी की भावना इतनी बलवती होती गई की इस संयुक्त परिवार की संरचना को हिला दिया . सदस्यों में छोटी छोटी वातो को ले कर आपसी प्रतिस्पर्धा एवं मनोमालिन्य उजागर होने लगी . परिणाम हुआ की संयुक्त परिवार धीरे धीरे बिखरती गई और इसके स्थान पर एकल पारिवारिक संरचना अपना स्थान धीरे धीरे फैलाने लगी .
संयुक्त  परिवार का एक महत्वपूर्ण सत्य था की इस  परिवार में रहने वाले सदस्यों की निजी जीवन में तनाव का बहुत ही कम स्थान होता था . इन्हे मालूम होता था की उनकी हरेक समस्याओ एवं जरूरतों की फिक्र परिवार  के अन्य सदस्य करते है और इनकी समाधान की संभावनाओ को तलाशते थे . संयुक्त परिवार में सदस्यों के बिच सम भावना रहने के कारण स्व भावना का उदय होने की बात तो सोची भी नहीं जाती थी . जब मनुष्य के जीवन ने स्व उत्थान की भावना नहीं आएगी स्वभाभिक है के तनाव कम होगा . मानुष की अपनी ईच्छाओं एवं अभिलाषाओ की लंबी उड़ान ही तनाव के मुख्य कारणों में एक है . संयुक्त परिवार में इन भावनाओ का स्थान नहीं होने से स्वाभाविक रूप से परिवार के सदस्यों को मानशिक तनाव नहीं उपजता है .