Thursday 13 December 2018

संस्कार और उसका महत्व


                                            संस्कार और उसका महत्व

  •                 संस्कार हमारी जीवन में जीवन को पूर्ण बनाने का एक अभीष्ट गुण है ,जिससे हम पूर्ण हो के शुद्ध आचरणों से अलंकृत होते है और मनुष इन्ही गुणों के कारन  अपनी सहज प्रवृतियों का सम्पूर्ण विकाश करते हुए अपने स्वम् और अपने समाज का कल्याण और विकाश करता है |
  •         संस्कार मनुष्य के अंदर अपने बुरे कर्मो को दूर करने की शक्ति के साथ साथ अच्छे कर्मो और कृतो  को अपनाने के गुणों का विकाश करता है जिससे मनुष स्वम् के साथ साथ अपने परिवार और समाज का विकाश को और अग्रसर होता है |
  •           संस्कार से  सामान्य अर्थ में हम समझते है कि संस्कार मनुष का वह गुण है जो उसको एक अच्छी और शभ्य , सुसंस्कृत मनुष्य बनने की गुणों को उसके अंदर विकाश करता है |
  •      संस्कार मनुष्य को बुरे विचारो ,अज्ञानता ,अंधकार से बाहर निकाल कर हमारे आचार,विचार को शुद्ध कर अच्छे कार्यो और ज्ञान –विज्ञानं से युक्त करता है |इससे हमारा सामाजिक और अध्यात्मिक जीवन पूर्ण होता है |हमारे व्यक्तित्व से निर्माण में काफी सहायक होता है |मेरे मन,वाणी और कर्म को शुद्ध ब्नानता है |
  •          हमारे समाज में संस्कार बच्चो अपने बड़ों से ग्रहण करते ,सीखते है | इस प्रिक्रिया का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है ,जिसकी नीव मनुष्य की जन्म  लेने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है| या यो कहा जा सकता है की बच्चा जब माँ के गर्व में रहता ही तभी से इसमें संस्कार के गुणों का बिकाश शुरू हो जाता है |बच्चे की माँ की सोच  ,स्वाभाव और प्रकृति जैसा होगा उस बच्चे पर उसका प्रभाव भी उसी सोच,स्वाभाव और प्रकृति  का पड़ता है |इसका सबले अच्छा उदाहरण और प्रसंग  हमारे धर्म ग्रन्थ महाभारत में आता है जब अभिमन्यु अपनी माता के गर्भ में था तो अर्जुन अपनी पत्नी को युद्ध के चक्रव्हू से कैसे निकला जाय  की रणनीति सुना रहे थे ,लेकिन  में ही उनकी पत्नी कहानी सुनते सुनते बीच में ही  सों गयी और पूरी रणनीति नही सुन स्की जिसका नतीजा सभी जानते है |
  •         परिवार समाज में बच्चा जिन जिन कार्यो को अपने बड़ों से क्रमबद्ध रूप  सीखता है ,उसी सिखने की प्रक्रिया को संस्कार का आरंभ माना जाता है जिसे बच्चा बचपन में ही प्रहण करता है | बच्चा अपने परिवार में अपने बड़ो से जिन आदतों को अपने बचपन में देखते  हुए बड़ा होता है ,जिसे देख कर करते  हुए बड़ा होता है उन्ही आदतों का प्रभाव उस पर पड़ता है और  इसी प्रक्रिया को संस्कार की नीव डालना कहा जाता  है, जो बचपन में ही पड़ता है |  बच्चा जब भी अच्छी और बुरी कार्यो के देखता है उसकी अंदर वैसी ही आदत पड़ती है |
  •          जब हमारे परिवार में बड़े ,बुजुर्ग आते है या बाहर जाते है तो घर छोटे बच्चो को बताते है की बेटा आपके रिश्ते में चाचा ,दादा ,या जो भी रिश्ता होता है उसे बताते है और तदनुसार  उन्हें पैर छु के प्रणाम करने की कहते है और तब बच्चा यह जनता है की अपने से बड़ो को कैसे प्रणाम किया जाता है |यहाँ तक की बच्चे अपने से बड़ो को जब ऐसा ही करते देखते है तो उसे नकल भी करते है और इसी तरह बे सीखते है |हम घर में जब कोई कार्य करते है तो बच्चे ध्यान से देखता है और उन्ही कार्यो को नकल करते है | |इस तरह की सिखने की गुण को ही संस्कार का प्रारंभ कहते है जो परिवार से ही प्रारंभ होता है |
  •       आप अपने बडो ,बुजुर्गो और दुसरे के साथ जैसा भी ब्यवहार करते है आपके परिवार में आपके छोटे बच्चो पर उसका काफी असर पड़ता है और उही उसको आदत और स्वभाव बन जाता है |;अगर उसने अपने से अच्छी आदते और शिक्छा ग्रहण की तो उसमे अच्छी आदते पड़ेगी बरना बुरा |यही आदते बच्चो  में संस्कार पैदा करना  कहते है |आप जैसा करेगे आपके छोटे वैसा ही सीखेगे |इसीलिए कहा जाता है की आप छोटे बच्चो के सामने ना तो गलत काम करे और ना गलत भाषा का इस्तेमाल करे क्योकि इसका असर बच्चो पर पड़ता है |
  •         हिन्दू शस्तो में संस्कार का मतलव उस धार्मिक कार्यो से था जो किसी व्यक्ति को अपने परिवार   ,समाज के विकाश और उन्नति के योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके अंदर सद्गुणों का विकाश कर मनुष्य के शरीर ,मन ,मष्तिष्क को पवित्र करने को था जिससे व्यक्ति के अंदर अभीष्ट गुणों का जन्म हो सके |
  •       हमारे धर्म में संस्कारो का प्रारंभ जीवन में इस अबस्थाओ में ही हो जाता है जिनमे –ग्राभाधारण , संतान्नोत्पत्ति , उसके बाद नामांकरण , अन्नप्राशन , चूडाकरण , उपनयन , ब्रह्मचर्य , बिबाह संस्कार के माध्यम से अपने गृहस्थी जीवन में मनुष्य प्रवेश करता है जहाँ से मनुष्य पुनः इन्ही संस्कारो को अपने बाद की पीढ़ी में डालते हुए अपनी अंतिम संस्कार की यात्रा की और प्रस्थान करता है |
  •           हमारे अभी के समाज में आजकल इन्ही संस्कार की कमी हो गयी है जिसका परिणाम है कि  हमारे परिवार ,समाज की अगली पीढ़ी के बच्चो में इन संस्कार रूपी गुणों का आभाव हो गया है और समाज में चारो और तनाव, गुस्सा के साथ साथ बुरी भावनाओ का आगमन हो गया है जिससे हमारा समाज बिकृत विचारो और कृतो के दलदल में फस  गया है |
  •       समाज के बड़े लोगो की यह जवाबदेही है की वे अपने अच्छे आचरणों और विचारी से अपनी अगली पीढ़ी को अवगत करावे |आपके बच्चे आपके कार्यो और विचारो को जव देखेगे तो उसका वे अनुसरण करेगे | कहा भी  जाता है की child  learn by doing .इसलिए आप अपने आदतों में सदाचार ,सद्गुण लाये और अच्छे कार्यो की करे ताकि आपकी अगली पीढ़ी सदाचारी, शभ्य ,बने |
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