Sunday 1 January 2012

संयुक्त परिवार --अपेक्षाओं / चाहतो से दूर

                     पूर्व में जब संयुक्त परिवार में लोग रहते थे तो उस प्रकार की पारिवारिक व्यवस्थाओ पर इतना गाढा विश्वास था की इस प्रकार की पारिवारिक व्यावस्था के  विषय में लोग अन्यथा कभी कोई भावना अपने दिल दिमाग पर  लेने  की सोचते भी नहीं थे .संयुक्त परिवार की परिकल्पना की निर्भरता मुख्य रूप से इस बात  पर थी . इसी सोच पर निर्भर करती है की संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के बीच एक ऐसा तालमेल हो जिसके कारण वे किसी एक सदस्य की निजी समस्या या परेशानी तथा उनकी खुशी पुरे परिवार की समस्या या खुशी बन जाय.इस प्रकार की पारिवारिक व्यवस्था में हर सदस्य अपने अपने सौंपे गए कार्यों को किया करते है . पुरुष एवंम महिला दोनों सदस्यों के कार्यों का निर्धारण उनकी क्षमता के आधार पर परिवार के प्रमुख्य निर्धारित किया करते थे .
संयुक्त परिवार का अस्तित्व अभी भी भारतीय सामाजिक संरचना में देखने  को मिलता है  .इस प्रकार की परिवार में परिवार के सभी सदस्यों का समन्यव एवं समग्र विकास देखने को मिलता है . ये अलग बात है की जो लोग संयुक्त परिवार की संरचना एवं परिकल्पना में विश्वास नहीं करते या जिनकी इस पारिवारिक संरचना को देखने का अवसर नहीं मिला वे लोग उसका रसास्वादन नहीं किये .वैसे लोग संयुक्त परिवार के स्थान पर एकल पारिवारिक संरचना या  व्ववस्था को ही अधिक सम्यक एवं व्यक्ति के विकास का अच्छा विकल्प मानते है .हलाकि उनकी सोचने का जो भी अंदाज़ हो या हो भी तर्क हो उससे भी इंकार नहीं किया जा सकता .लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है की संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों का विकास नहीं होता है . संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों की विकास की गति कुंठित या मलिन नहीं  होती है . मेरा मानना है की इससे उनकी विकास की गति या उनकी चमक ओर तीव्र होती है . यह भी सर्व सत्य है की इस प्रकार के परिवार की विकास में कुछ सामान्य सिद्धांत या सामान्य ,मान्यता है जिनसे परिवार के सभी सदस्यों को दूर रहने होते है , इस परिवार के सदस्यों को एक  दो शव्दों के धार से जितनी दूर रहेगे ,उनका संयुक्त परिवार उतना ही प्रबल और सफल होगा . ऐसा मेरा मानना है . हो सकता है अन्य लोगो की भावना या सोच इससे नहीं मिलती हो ,लेकिन अगर वे लोग जो इस सोच से अलग सोच या विचार रखते है अगर इस शव्द की गहराई एवं मारक क्षमता पर नजर डालेगे तो उन्हें उसकी मारक क्षमता का असर अवश्य सुनाई पड़ेगी.अब आप कह सकते है की वह कौन सी भावना है जिससे संयुक्त परिवार के सदस्यों को थोड़ी दुरी बनाये रखनी चाहिए . इस भावना से जितनी दुरी होगी वह संयुक्त परिवार उतना ही सफल और सवल होगा .वह शव्द या भावना है 'अपेक्षा या चाहत '.(expectations & desire ) जो हमेशा दूसरों से की जाने वाली  होती है .
   मै यह नहीं कहता की संयुक्त परिवार के सदस्यों के बीच  कोई  अन्य सदस्यों से कोई अपेक्षा expectations या चाहत desire की भावना नहीं रखनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए . मै  ऐसा समझता हू की संयुक्त परिवार के सदस्यों के बीच अगर व्यक्तिगत अपेक्षा या चाहत की  भावना प्रवाल होगी तो एसे परिवार की निर्भरता की सीमा घटती जायेगी . यह सही है की अपेक्षा या चाहत के कारण ही मानव ने कई बड़े बड़े अविष्कार किये है .कई उन्नत ,उपयोगी वस्तु ,साधन, समाज को दिया है . इसप्रकार की अपेक्षा  जन विकास के लिए आवश्यक थी जो किया . यहाँ भी उन अविष्कारकर्ता या वैज्ञानिक की भावना अपने स्व  विकास तक सिमित या सोच नहीं था या रहता है वल्कि वे तो समग्र समाज देश और विश्व की कल्याण या उनकी सुख सुविधा को ध्यान में रख कर उस प्रकार की आविष्कार की अपेक्षा रखते है या करते है  .
अपेक्षा या किसी से चाहत भावना का व्यक्ति के जीवन में एक बड़ा ही अहम महत्व होता  है . लेकिन यह भावना तब काफी दुखदाई हो जाती है जब कोई आदमी या संयुक्त परिवार का सदस्य दूसरों से अपने लिए यह  अपेक्षा रखता है की मै कुछ दूसरों के लिए करू या न करू परिवार के दूसरे सदस्य मेरे को करे .ऐसा करने के पीछे यह भावना रहती है की या  तो मै परिवार का बड़ा सदस्य हू या किसी कारन के महत्व पूर्ण सदस्य कमाई या पद के कारन हो .जब वह सदस्य अपने को संयुक्त परिवार के अन्य सदस्व से उपर मानने लगा हो .उनकी भावना हो जाती है की परिवार के अन्य सदस्य उनकी सारी बातों को माने उनकी सुख सुविधा का ख्याल रखे भले ही वे सज्जन अन्य सदस्यों की इन भावनाओ का ख्याल नहीं रखते हो तभी उनकी यह अपेक्छा या चाहत जव पूरी नहीं होती है ,कष्ट का कारण बन जाती है जो संयुत्क्त परिवार की डोड मै एक गाठ का कारण वन जाता है जो वाद में एक बड़ा नासूर वन जाता है और पारिवारिक संरचना को धीरेधीरे समाप्त की और ले जाता है ..
यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा की  अपेक्षा हमेशा दूसरों से किया जाता है ,जबकि स्वपेक्षा आपने से की  जाती है .हमलोग दूसरों से  अपेक्षा तो रखते है लेकिन अपने अंदर नहीं झाकते है की मैंने दूसरों के लिए  क्या किया .संयुक्त परिवार में भी जब कोई सदस्य इसी भावना से पीड़ित हो जाता है तो संयुक्त परिवार की डोर  में गांठ पड़ जाती है.इस परिवार के किसी सदस्य ने अपने परिवार के अन्य सदस्य के विषय में कोई  अपेक्षा  रखना चाहे तो उसके साथ अपने को दूसरों के प्रति  व्यवहार के विषय में या कुछ करने के विषय में भी स्वाथ्य विचार रखने चाहिए . फिर जव उसे  उस व्यक्ति से  वैसी अपेक्षा जैसा व्यव्हार  नहीं मिलता है तब अपेक्छा रखने बलों के लिए  दुःख का कारन तो बनता ही है .उसके साथ साथ रिश्तों में भी खटास की बू आने लगती है जो बाद में चल के संयुक्त परिवार के सीधी चाल को असर ड़ाल देती है
   संयुक्त पारिवार का  एक सदस्य अगर दूसरे सदस्य से कोई  अपेक्षा रखते है तब वैसी स्थिति में ऐसा  अपेक्षा  दूसरों से रखने बाले परिवार के  सदस्यों को यह भी सोचना और समझना  चाहिए की परिवार के अन्य सदस्यों की भी कुछ अपेक्षाएं उनसे होगी . क्या  उन्होंने उन सदस्यों के अपेक्षाओं को पूरा किया .अगर नहीं किया तो उन सदस्यों की  भी भावना क्या उनके प्रति होगी .
यह उदाहरण का मामला नहीं है .मेरा मानना है की किसी भी व्यक्ति की दूसरों से  अपेक्षा रखना ही कष्ट का कारन होता है . हम अपने में नहीं देखते और  अपेक्षा करते है की दूसरा कोई हमसे अच्छा व्यव्हार करे , मेरी सभी जरूरतों को पूरा करे . यह  अपेक्षा रखते है ,लेकिन वे यह भूल जाते है की मै अपने परिवार की अपेक्षाओं पर  कितना खड़ा उतरा . मेरे यह मानना  है की आप दूसरों से  अपेक्षा करने या रखने के बजाय आप स्वं आपने अंदर झांके और देखे की आप कितने लोगो की  अपेक्षा पर खड़े उतरे है . दूसरे लोगो की आपसे भी काफी  अपेक्षा  होगी या उनलोगों ने आपसे  अपेक्षा की होगी ,तो ऐसी स्थिति में आपको दूसरों से  अपेक्षा करने से पहले अपने आप से यह प्रश्न का उत्तर पाए की मै कितना अन्य के अपेक्षाओं पर खड़ा उतरा .
संयुक्त परिवार में जब हम यह सोचते है की मेरे काम सब करे तो मेरे भलाई सोचे तो मुझे भी पहले देखना होगा की मैंने परिवार के अन्य सदस्यों के लिए कितना किया . जब यह भावना आप में होगो तो संयुक्त परिवार का पौधा अपने आप उन भावनाओ से सिचता हुआ और हरा भरा रहेगा जिसके छांव में संयुक्त परिवार के सभी सदस्य सम्मान ,एकता ,एवम सहजता के साथ रह सकेगे .
ये अलग बात है की संयुक्त परिवार में अगर हमारे चाचा ,चाची ,बड़े या छोटे भाई भाभी मामा मामी ,दादा दादी अर्थात सभी सदस्य के बिच अगर एक दूसरों से  अपेक्षा पर निर्भरता सामान्य रूप से अधिक अगर नहीं रहती है ,तब तक संयुक्त परिवार रूपी गाड़ी निर्वाध  रूप से चलती रहेगी .संयुक्त परिवार का रूप एवं स्वरुप तथा खूबी ही है की संयुक्त रहे ,संयुक्त सोचे ,संयुक्त विकास करे और संयुक्त रूप से सभी सदस्य एक दूसरों की दुःख दर्द एवं सुख का आनंद ले .
                        इस लेख के बिषय में आप की  कोई भी टिप्पणी ,विचार मेरे लिए पथप्रदर्शन का कम करेगी .

1 comment:

  1. अपेक्षा शायद हर रिश्ते में खटास ले आता है...| बहुत विचारपरक लेख है...बधाई...|

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