Monday 18 June 2018

जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही

जो आसानी से मिलती है उसकी कद्र नही
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जब मे छोटा था और अपने परोस के गाँव के सरकारी स्कूल में पढाई करता था तब मेरे पिता जी मुझे घर पर पढ़ाने के लिए एक टीचर रखे थे जो मेरे गाँव के ही थे और मुस्लिम थे .वे मेरे घर पर रहते थे और वहीं उन्हें खाना और पढ़ना रहता था | वे मेरे अलावा मेरे चचेरे भाई को भी पढ़ाते थे | मुझपर उनकी थोड़ी ज्यादा कृपा दृष्टी रहती थी |

एक दिन उन्होंने जो एक कहानी हम लोगो को सुनाई. उसकी गूंज आज तक मेरे कानो में मौजूद है | कभी कभी वे शब्द अनायास कानो में बजने लगते हैं जैसे कि  आज एकाएक महसूस हुआ | मै उस कहानी को आपके साथ साझा कर रहा हूँ -------

एक शहर में एक संपन्न व्यक्ति रहते थे जिनका अपना कारोबार शहर में था . बड़ा खुशहाल परिवार था और उस परिवार में ज्यादा सदस्य भी नही थे . उनकी पत्नी भी काफी सुशिल सदभावी और सुसंस्कृत धर्मपरायण महिला थी | शादी के कुछ दिन बाद उस व्यक्ति के घर में एक बालक का जन्म हुआ | काफी धूमधाम से उस बालक की आने के अवसर पर जश्न मनाया गया.  कुछ दिन और जब बीता और बालक कुछ बड़ा हुआ तो उनकी पत्नी की तबियत खराब रहने लगी | चिकित्सक से देखने पर उन्हें टी ०बी० की बीमारी बताया गया | बहुत पहले यह बीमारी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी |

कुछ दिनों के इलाज के बाद उनको पत्नी का इंतकाल हो गया | घर के और लोगो ने तथा परिजनों ने उनपर दवाब बनाया कि  बच्चा छोटा है घर में देखभाल के लिए कोई नही है इस कारन आप दूसरी शादी कर ले | लेकिन उस भद्र पुरुष ने किसी की एक ना सुनी और दूसरी शादी नही की | अपनी कारोवार के साथ साथ अपने बालक को बड़े लाड प्यार से पढ़ाया और बड़ा किया |लड़का उनके ही साथ उनके कारोवार में हाथ बटाने लगा | धीरे धीरे बालक शादी के योग्य हो गया | पिता ने अपने पिता धर्म निभाते हए उसकी शादी कर दी | घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया |

कुछ दिन और बीतने के बाद पिता ने सोचा, अब मुझे अपना सारा कारोबार अपने बेटे को सौप कर मुझे आराम की जीबन बिताना चाहिए | बेटा से अपने मन की बात साझा किया |बेटे ने आदर्श पुत्र की तरह ही पिता की इक्छा का सम्मान किया |
पिता अपना सारा कारोवार अपने बेटा को सौप कर आराम की जीवन जीने की लालसा से जी रहा था |

कुछ ही दिन बीते थे की एक दिन पिता खाने के टेबल पर था और उसकी पुत्र बधू उसको खाना परोसी थी |जब खाना परोस कर लायी तो बाप ने देखा की उसके सामने रोटी लायी गयी वह बिना घी के थी | इन महाश्य की आदत थी की जब भी वे खाना में रोटी खाते थे तो रोटी में घी लगना आवश्यक था |पिता ने कुछ नही कहा और खाना खा लिया | जब वे खाना कहा रहे थे तो बेटा जो उनका अब सारा कारोवार सभाल रहा था अपने काम से वापस घर आया, उसने अपने पिता को खाता देखा था |

बाद में उसकी पत्नी ने उसे भी खाना खाने हेतु खाना परोस कर लायी | उसके खाने में उसने देखा की उसको जो रोटी खाने को रोटी दी गयी उसमे घी लगी है |उस समय बेटे ने कुछ नही किसी से बोला और चुप चाप रहा |

दुसरे दिन पुत्र ने अपने पिता से कहा कि पिता जी अब आप पुनः अपना कारोवार सभाले और मै आप के कारोवार में एक कर्मचारी की भांति काम करूँगा और अब मै आप के साथ भी नही रहूँगा | मै अब अलग एक किराये के मकान में अपनी पत्नी के साथ रहूँगा | पिता ने समझाया, लेकिन बेटा नही माना और अपने पिता का घर छोड़ कर एक किराया के मकान में चला गया | पिता ने इतना कहा की कारन क्या था अब तो तुम मुझे बताओ |

पिता के कहने पर पुत्र ने सारी कहानी बताई और कहा कि पिता जी, जब मै ने देखा की आप के द्वारा रोटी में घी लगाने को कहने पर भी घी ख़त्म होने को बात बताई गयी और घी नही मिला ,उसी समय मेरे खाने में रोटी में घी लगा मिला तो मै ने तय किया कि आराम से बिना कुछ किये अगर किसी को कुछ मिलता है तो उसकी कीमत वह नही अंकता है |

इस बात को सुन कर उसकी पत्नी को अपने किये पर काफी अफसोस हुआ और उसने पिता से माफी मांगी | फिर सभी पिता पुत्र पुत्रबधू साथ साथ रहने लगे |

मुझे लगा की मै उतनी पुराणी कहानी आपके साथ सेयर करू इसलिए मै ने यादास्त को तरो 

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